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जिस्म मिट जाने से कब हस्तियां मिटा करती है।
Saturday, March 9, 2013
सिखों को, किसी के दिए वफादारी के प्रमाण पत्र की जरुरत नहीं
हेमेन्द्र सिंह हेमू
वर्ष 1984 के दंगो में जलने वाले सिखों की तपिश तो मै महसूस नहीं कर सकता क्योकि मेरी उम्र उस वक्त कम थी लेकिन उस पीड़ा को मै बखूबी महसूस कर सकता हूँ जो उन्होंने न्याय ना मिल पाने के बाद झेली होगी!
रातो रात एक बहादुर कौम को गद्दार साबित कर दिया गया, ये जानते हुए भी कि यह वही कौम है जिसने हिन्दू धर्म की रक्षा में तथा भारत की आजादी की लड़ाई में और भारत की आर्थिक प्रगति में बहुत बड़ा योगदान दिया है। मुगलों, अंग्रेजो से लड़ते हुए अपना सब कुछ खो दिया लेकिन मादरे वतन से गद्दारी नहीं की!
वर्ष 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों को शायद कुछ लोग भूल चुके होंगे मगर इन दंगो की वजह से हजारों परिवारों को मिले घाव वर्षो बाद भी हरे हैं। उन जख्मों की टीस वे हर दिन और हर पल महसूस करते हैं।अपनी आंखों के सामने अपने बेटे और नाती को मौत के मुंह में जाते देखने वाले हरप्रीत सिंह उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि ‘कैसे भूलूं वह दिन...जब दंगा फैल रहा था और मैंने खुद अपने बेटे को समय से पहले दुकान से घर जाने के लिए कह दिया। सरोजनी नगर में हमारी कपड़े की दुकान थी और थोड़ी ही दूरी पर घर था।' दंगों को याद करते उनकी आंखें नम हो जाती हैं... वे कहते हैं कि, 'मैं नहीं जानता था कि अपने बेटे और सात साल के नाती को मौत के मुंह में भेज रहा हूं। रास्ते में हंगामे से बचते हुए किसी तरह मैं जब घर पहुंचा, तो पूछने पर पता चला कि मेरा बेटा और नाती घर नहीं पहुंचे। मैंने पता करने की कोशिश की। काफी देर बाद मुझे पड़ोसियों ने बताया कि भीड़ ने दोनों को मार डाला।' हरप्रीत कहते हैं, 'मैं आज तक नहीं समझ पाया कि आखिर हमारा कसूर क्या था। मैंने अपना बेटा और सात साल के नाती को खो दिया। एक बाप के लिए इससे बड़ा दुख और क्या होगा। मुकदमा व मुआवजा तो चलता रहता है, लेकिन मैंने जो खोया उसकी भरपाई कौन करेगा।'
आज से 28 साल पहले यानी 1984 में हुए सिख विरोधी दंगे भारतीय इतिहास के सबसे काले अध्यायों में एक हैं। वह नरसंहार 31 अक्टूबर 1984 को सिख अंगरक्षक द्वारा इंदिरा गांधी की हत्या की प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरूप हुआ था, जो एक और तीन नवम्बर 1984 के बीच देश भर में हजारों बेगुनाह लोगों की मौत और विध्वंस का सबब बन गया। उस दंगे में हजारों सिखों को मौत के घाट उतार दिया गया।
एक अनुमान के मुताबिक उस दंगे में दस हजार से भी अधिक लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इस नरसंहार की सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि तीन दिनों तक यह खूनी खेल देश के किसी सुदूर कोने में नहीं बल्कि राजधानी दिल्ली में चलता रहा। कांग्रेस के शासन में जब सिखों को मौत के घाट उतारा जा रहा था, उनकी दुकानों को आग के हवाले किया जा रहा था, उनके घर लूटे जा रहे थे और उनकी पत्नियों के साथ बलात्कार किया जा रहा था, तब पुलिस और प्रशासन मूक दर्शक बनकर तमाशा देख रहा था।
इसे हर लिहाज से घृणित और जघन्य अपराध कहा जाएगा। 1947 के बाद आजाद भारत में आज तक इतनी बडी और भयानक घटना कभी नहीं हुई। यहां तक कि मुंबई और गुजरात के भी दंगे सिख विरोधी दंगों की तुलना में कमतर ही ठहरते हैं। यह कटु सत्य है कि इस घटना को अंजाम देने वाले और उनके राजनीतिक संरक्षकों में से अधिकांशतः सजा से साफ बच गए हैं और उन्हें उनके कृत्यों के लिए कभी कठघरे में खड़ा नहीं किया जा सकेगा। तो क्या हमें इसे एक बुरा सपना मानते हुए भूल जाना चाहिए? कम से कम दुनिया के सबसे बड़े कथित लोकतंत्र का दम भरने वाले, देश पर थोपे गए प्रधानमंत्री का तो यही कहना है! शायद इससे ज्यादा शर्म की बात कोई और दूसरी होना मुश्किल है! वो भी जब सिखों ने मुल्क की हिफाजत के लिए इतिहास में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया हो और वर्तमान में किसी राज्य की मिलकियत नहीं सिर्फ सम्मान और न्याय मांग रहे हो! रही बात गद्दारी कि तो सिखों को, किसी के दिए वफादारी के प्रमाण पत्र की जरुरत नहीं है! उनका गौरवशाली इतिहास उनकी बहादुरी, वफादारी, ईमानदारी, वीरता, मेहनतकश होने की चीख चीख कर गवाही दे देता है!
इरोम शर्मिला भी तो देश की बेटी है?
आज़ादी के छह दशक गुजर जाने के बाद भी हमारा पुलिस महकमा आज भी ब्रिटिश काल में जी रहा है व अंग्रेजो के बनाए गए काले कानूनों का धडल्ले से इस्तेमाल कर रहा है, जबकि यह कानून वर्तमान में अपनी प्रासंगिकता खो चुके है! सच्चाई तो यह है कि पुलिस का इस्तेमाल अंगेजो ने समय समय पर उठ खड़ी होने वाली आवाजो के बर्बर दमन के लिए किया था, अब आजादी के बाद सत्तापक्ष कर रहा है!
मणिपुर में विवादास्पद सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) को हटाने की मांग पर पिछले 12 साल से भूख हड़ताल के जरिये मैराथन संघर्ष कर रहीं इरोम शर्मिला को लंबे वक्त तक नजरअंदाज नहीं किया जा सकता! इरोम शर्मिला पर लगाईं गयी भारतीय दंड सहिंता की धारा 309 कहती है -''जो कोई आत्महत्या करने का प्रयत्न करेगा ओर उस अपराध को करने के लिए कोई कार्य करेगा वह सादा कारावास से ,जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से ,या दोनों से दण्डित किया जायेगा!
,,,,,पिछले 12 सालों से अनशन कर रहीं सामाजिक कार्यकर्ता और मणिपुर की आयरन लेडी के नाम से मशहूर इरोम शर्मिला पर 2006 में खुदकुशी की कोशिश के मामले में दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने आरोप तय कर दिए हैं! लगाये गए आरोपों पर उत्तर देते हुए इरोम शर्मिला ने अदालत से कहा, 'मैं जिंदगी से प्यार करती हूं. मैं अपनी जिंदगी लेना नहीं चाहती लेकिन मैं न्याय और शांति चाहती हूं.' हालांकि मजिस्ट्रेट ने उनसे कहा कि उन पर खुदकुशी का प्रयास करने का आरोप है और प्रथम दृष्टया उनके खिलाफ आरोप दिखता है! इरोम शर्मिला इंफाल हवाई अड्डे के पास मालोम क्षेत्र में असम राइफल्स के जवानों की गोलियां से 10 नागरिकों की मौत के बाद से ही 2000 में आमरण अनशन पर है, वह फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं और उन्हें नाक के रास्ते से भोजन नली से भोजन दिया जा रहा है! अब हम बात करते है दिल्ली पुलिस के लगाए गए इरोम शर्मिला पर खुदकुशी की कोशिश के बचकाने आरोपों की! गौरतलब है पहले तो ये कि, यह धारा इरोम पर लगाईं नहीं जा सकती, दूसरा गांधी के इस देश में अनशन करना कोई गुनाह नहीं है!
धारा 309 , कुख्यात धारा 151 से भी ज्यादा बर्बर है क्योकि सम्पूर्ण दंड सहिंता में ये ही एक ऐसी धारा है जिसमे अपराध के होने पर कोई सजा नहीं है ओर अपराध के पूर्ण न हो पाने पर इसे करने वाला सजा काटता है! ये धारा आज तक न्यायविदों के गले से नीचे नहीं उतरी है क्योंकि ये ही ऐसी धारा है जिसे न्याय की कसौटी पर खरी नहीं कहा जा सकता है!
पी.रथिनम नागभूषण पट्नायिक बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 1994 एस.सी. 1994 के वाद में दिए गए अपने ऐतिहासिक निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने दंड विधि का मानवीकरण करते हुए अभिकथन किया है कि ''व्यक्ति को मरने का अधिकार प्राप्त है! .''इस न्यायालय की खंडपीठ ने [न्यायमूर्ति आर एम् सहाय एवं न्यायमूर्ति बी एल हंसारिया द्वारा गठित ]दंड सहिंता की धारा 309 को जो कि आत्महत्या के प्रयास को अपराध निरुपित करती है ,असंवैधानिक घोषित कर दिया क्योंकि यह धारा संविधान के अनुच्छेद 21 के प्रावधानों से विसंगत थी!
उच्चतम न्यायालय ने इस निर्णय में अभिकथन किया है कि'' किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन के अधिकार का उपभोग स्वयं के अहित ,अलाभ या नापसन्दी से करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता .आत्महत्या का कृत्यधर्म नैतिकता या लोकनीति के विरुद्ध नहीं कहा जा सकता है तथा आत्महत्या के प्रयास के कृत्य का समाज पर कोई हानिकारक या प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है! इसके आलावा आत्महत्या या आत्महत्या के प्रयास से अन्यों को कोई हानि कारित नहीं होती इसीलिए व्यक्ति की इस व्यैतिक स्वतंत्रता में राज्य द्वारा हस्तक्षेप किये जाने का कोई औचित्य नहीं है!
दंड सहिंता की धारा 309 को संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत व्यक्ति को प्राप्त स्वतंत्रता का अतिक्रमण निरूपत करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा
''इस धारा का दंड विधि से विलोपन होना चाहिए ताकि दंड विधि का मानवीकरण हो सके, विद्वान न्यायाधीशों ने इस धारा को क्रूर व् अनुचित बताया और कहा कि इस धारा के कारण व्यक्ति दोहरा दंड भुगतता है प्रथम तो वह आत्महत्या की यंत्रणा भुगतता है और आत्महत्या करने में असफल रहने पर उसे समाज में अपकीर्ति या बदनामी भुगतनी पड़ती है! जो काफी पीड़ा दायक होती है ऐसी स्थिति को स्वयं न्यायालय भी अनुचित मानते हैं और इस धारा को विलोपित किया जाना आवश्यक मानते हैं क्योंकि एक ऐसा व्यक्ति जिसने आत्महत्या का प्रयास किया ऐसी स्थिति में होता है कि वह अपने परिवार समाज से फिर से जुड़ सकता है किन्तु उसके लिए दंड का प्रावधान उसके लिए और भी मुश्किलें खड़ी कर देता है! .ऐसा प्रावधान तो आत्महत्या करने वाले के लिए होना चाहिए किन्तु उसके लिए ऐसा संभव नहीं है! .अपने निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि यह कहना गलत है कि आत्महत्या करने का प्रयास करने वाले व्यक्ति को दंड नहीं मिलता है जबकि वह तो दोहरा दंड भोगता है प्रथम आत्महत्या करने के प्रयास में उसे पहुंची यंत्रणा और संत्रास ,तथा दूसरे आत्महत्या करने में विफल रहने पर उसकी बदनामी या अपकीर्ति!
कुलमिलाकर लब्बोलुआब यह है कि पी.आर.नागभूषण पट्नायिक बनाम भारत संघ के वाद में उच्चतम न्यायालय द्वारा 26 अप्रैल 1994 को दिए गए निर्णय के परिणाम स्वरुप दंड सहिंता की धारा 309 असंवैधानिक होने के कारण शून्य घोषित कर दी गयी थी लेकिन आज भी इस निष्प्रभावी धारा को पुलिस धडल्ले से इस्तेमाल कर रही है, आये दिन लोगो पर आत्महत्या के प्रयास में अब भी मुक़दमे दर्ज किये जा रहे हैं!
क्या यह अवमानना नहीं है? क्या यह लोकतांत्रिक व्यवस्था का मखौल नहीं है? इस सब पर चर्चा करने का कारण यह था कि इरोम शर्मिला के लगाए गए आरोपों की निष्पक्ष जांच की जाती व गुनाहगारो को कठोर दंड दे दिया जाता तो यह मामला इतना बढ़ता नहीं! वैसे भी इस समस्या का हल बंदूक से निकलना नामुनकिन है क्योकि बंदूक में ही हल छुपा होता तो निकल गया होता! इस समस्या के मूल में बांग्लादेशी घुसपैठ और इस मसले पर की जा रही राजनीति है, और जब तक इसके मूल में राजनीति है समस्या का हल होना असम्भव है, लेकिन हमारे राजनेताओं को, यह तो समझना ही चाहिए कि इरोम शर्मिला भी इस देश की बेटी है, उसकी बात भी सुनी जानी चाहिए, नाकि ऐसे मुकद्दमे दर्ज कर असमियो के घावो पर नमक छिडकना चाहिए!
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न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला
मारुति श्रीपति दूबल बनाम महाराष्ट्र राज्य 1987 क्रि.ला.जन. 743 बम्बई में अभियोजन कार्यवाही इसलिए निरस्त कर दी क्योंकि यह धारा असंवैधानिक है न्यायमूर्ति सांवंत ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 व् 21 के उल्लंघन के कारण शक्ति बाह्य मानाऔर इसके विलोपन के लिए कहा .और इसके कारण निम्न बताये -
1-अनुच्छेद 21 में व्यक्ति को जीवन का अधिकार प्राप्त है जिसमे जीवन को समाप्त करने का अधिकार विविक्षित रूप से शामिल है ऐसा इसलिए क्योंकि अनु.21 में दिए गए मौलिक अधिकारों की व्याख्या अन्य मौलिक अधिकारों के समान की जानी चाहिए चूँकि वक् स्वतंत्रता में न बोलने के अधिकार का भी समावेश है तथा व्यवसाय करने की स्वतंत्रता में व्यवसाय न करने के अधिकार का भी समावेश है अतः जीवन के अधिकार में जीवन को समाप्त करने का अधिकार भी शामिल है .
2- यदि इस बात पर विचार किया जाये कि साधारणत व्यक्ति आत्महत्या की ओर प्रवृत क्यों होता है तो प्राय यह देखा जाता है कि इसके लिए मानसिक अस्वस्थता तथा अस्थिरता ,असह्य शारीरिक कष्ट .असाध्य रोग आसाधारण शारीरिक विकृति सांसारिक सुख के प्रति विरक्ति आदि में व्यक्ति विवश होकर आत्महत्या का मार्ग अपनाता है .इस प्रकार जो व्यक्ति पहले से ही व्यथित ओर जीवन से हताश है क्या उसे आत्महत्या के प्रयास के लिए दंड दिया जाना उचित होगा ?
3- भारतवर्ष में आत्महत्या के अनेक प्रकार चिरकाल से प्रचलित रहे हैं जौहर सती प्रथा आदि प्रमुख रूप से प्रचलित थे ,इस दृष्टि से भी आत्महत्या के प्रयास को अपराध माने जाने का कोई औचित्य नहीं है .
इसलिए न्यायालय ने इस धारा को अनु.14 व् 21 का उल्लंघन करते हैं ओर मनमाने भी हैं ये माना! भारत के विधि आयोग ने भी अपने 4 2वे प्रतिवेदन में 1971 में धारा 309 को निरसित किये जाने की अनुशंसा की थी क्योंकि उसके विचार से इस धारा के उपबंध कठोर होने के साथ साथ न्यायोचित नहीं हैं .
हेमेन्द्र सिंह हेमू
प्रदेशाध्यक्ष
हिंदुस्तान स्वराज कांग्रेस नेशनल पार्टी
(गरम दल, सुभाषचंद्र बोस गुट)
ये बंदा थोडा दूजे किस्म का है, गोली का जवाब गोली से देता है!
हेमेन्द्र सिंह हेमू
अगर कोई अधिकारी अपने कार्य को सही प्रकार से करें तो व्यवस्था में परिवर्तन स्वयं दिखाई देने लगता है। ऐसा ही कुछ सीमावर्ती जिले श्रीगंगानगर में इन दिनों दिखाई देना शुरू हो गया है। जब से जिला पुलिस प्रशासन की कमान पुलिस अधीक्षक संतोष चालके . ने सम्भाली है तब से जिला पुलिस प्रशासन में बदलाव नजर आने लगा है।
श्रीगंगानगर: कहते है जहा चाह हो वहा राह निकल ही जाती है, यह कहावत फिट बैठती है पुलिस कप्तान संतोष चालके पर, जिन्होंने जिला मुख्यालय संभालते ही दागी पुलिसकर्मियों को सुधर जाने की चेतावनी दे दी, इसके बाद जो सुधरा, वो बच गया, जो नहीं सुधरा उसकी भावविनी विदाई करते देर नहीं लगाईं! इसी कारण कल तक जहा थानों में परिवादी की सुनवाई नहीं होती थी, वही आज थानों में पुलिसकर्मी, परिवादी के साथ अदब से पेश आते है! अगर कही कोई सुनवाई नहीं कर रहा है तो कप्तान साहब तुरंत एक्शन लेने में हिचकिचाते नहीं है! यही कारण है कि पुलिस महकमे में बदलाव साफ़ साफ झलकता है। पूर्व में यही व्यवस्था रुपिंदर सिंघ के लचर कार्यकाल में हाशिये पर चली गयी थी व जिला मुख्यालय पर दलालों, दागियो का जमावड़ा लग गया था! गौरतलब है कि कप्तान संतोष चालके ने जिले की कमान उस वक़्त सम्भाली थी जब जिला पुलिस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लग रहे थे, ऐसे में उनके सामने चुनौती सिर्फ पुलिस की छवि सुधारना ही नहीं बल्कि आमजन में पुलिस के प्रति विश्वास कायम करना भी था! जो कि पिछले साल भर में उन्होंने कायम करने में सफलता, बखूबी हासिल की है! संतोष चालके की तेजतर्रार कार्यप्रणाली का नमूना उनके पोस्टिंग लेते ही देखने को मिला था जब उन्होंने तत्परता से सीमा पर हेरोइन की तस्करी करने वालो को पकड़ लिया था!
संतोष चालके ने अन्य पुलिस कप्तानो की तरह शुरूआती सख्ती दिखाने के बाद शांत हो जाने की आदत के उलट, नियमित अभियान चला कर, यह साफ़ कर दिया कि वह महज दिखावे या वाहवाही के लिए कुछ नहीं करते! इसकी मिसाल कप्तान द्वारा चलाये गए ऑपरेशन रोमिओ से साफ़ झलकती है! इस अभियान ने जहा अभिभावकों में विश्वास पैदा किया वही मनचलों के भीतर भय पैदा कर दिया! यह कप्तान की दूरदर्शिता का ही नतीजा था कि शहर का एक चक्कर लगा लेने के बाद उन्हें शहर की मुख्य समस्या यातायात की है समझ आ गया, इस समस्या के समाधान के लिए संतोष चालके . ने बेतरतीब, बेढब ढंग से टैम्पो चलाने वालो को, यातायात नियमों की पालना की हिदायत देकर यह जता दिया कि अब आटो चालकों की मनमानी नहीं चलेगी जिसका असर सुधरी हुई ट्रेफिक व्यवस्था और आटो चालकों में दिखाई दे रहा है।
कुलमिलाकर यह तो मानना पड़ेगा कि संतोष चालके के राज में, अगर अपराधो में कमी नहीं आई है तो सुखद यह है कि बढ़ोतरी भी नहीं हुई है! यह भी किसी उपलब्धि से कम नहीं है कि जिले में घटित होने वाली अधिकतर वारदातों का खुलासा हो चुका है व जिनमे नहीं हुआ है उनमे होने की उम्मीद बाकि है! ऐसा नहीं है कि संतोष चालके का यह दबंग रूप श्रीगंगानगर में ही देखने में आया है! इससे पूर्व कि पोस्टिंग में कहा जाता है कि पदभार ग्रहण करते ही उनके एक वक्तव्य ''गोली का जवाब गोली'' ने अपराध जगत के सरगना, अवैध खनन व्यवसायियों, वाहन चोरों, लुटेरों की नींद हराम कर दी थी! अंत में लब्बोलुआब यह है कि यदि प्रशासक सख्त हो तो नियम कानून तोडऩे वालों के हौसले खुद-ब-खुद पस्त हो जाते हैं। किसी अधिकारी की सोच एवं लगन तथा मेहनत काफी हद तक सरकार एवं प्रशासन की छवि निखारने में अहम भूमिका अदा करती है।
Thursday, February 2, 2012
अन्याय वनाम अन्य आय
..............................
पटवारी ने बड़े ही प्रेम से
भजने को समझाते हुए कहा
रिश्वत अन्याय नहीं
अन्य आय है
जैसे तुम दूध में पानी
दाल में कंकड़,चाय पत्ती में चमड़ा
सड़क के तारकोल में काली राख
हल्दी में पीली मिटटी डाल कर करते हो
अन्याय तो वो होता है
जब एक पटवारी
अन्य आय लेकर भी
पानी की वारी काट दे
अध्यापक ट्यूशन पढ़ा कर
बच्चो को इम्तिहान में
गलत सवालों के
अच्छे नंबर ना दे
और
सिपाही सौ का नोट लेकर भी
वाहन का चालान भर दे
बाल विकास अधिकारी
पैसा लेकर भी
मिड डे मील की खिचड़ी में से
कंकड़,कीड़ा निकाल दे
नगरपिता थ्रीडी टी वी लेकर भी
ठेकेदार को टेंडर का बिल पास ना करे
हेमू सिंह
श्रीगंगानगर राजस्थान
कुत्ता और आदर्शवाद
..............................
अगर खाली पेट
आदर्शवाद से भर जाता तो
भूखी सडांध मारती गलियों में
दंगे नहीं होते
आदर्शवाद से सिर्फ पेट भरता है
हमारे खाए पीये अघाए
नेताओं का
जो वक़्त पड़ने पर किसी गरीब की
चिता की आग में भी
आदर्शवाद की खिचड़ी
पका सकते है
आदर्शवाद कुछ नहीं होता
होती है सिर्फ भूख
दो कुत्तो को या भूखो को
रोटी के लिए लड़ते देख
आदर्शवाद की बात सोचना
महापाप है
उनके लिए तो सिर्फ एक ही
आदर्श है कि
कैसे
बीच में पड़ा रोटी का वो
टुकड़ा
हाथ में आये
हेमू सिंह
श्री गंगानगर राजस्थान
Sunday, November 6, 2011
अंधेर नगरी चौपट राजा
अंधेर नगरी चौपट राजा
हेमेन्द्र सिंह हेमू
"ये कैसी फिजा मेरे शहर की हो रही है
अपना साया भी अब खौफजदा करता है"
श्री गंगानगर शहर में जिस तरह नशेबाज़ी,सट्टेबाजी,अपराध बढ़ रहे है उन्हें देखते हुए कहना यही पड़ेगा की यह अंधेर नगरी है और इसका राजा चौपट है! आये दिन कोई ना कोई अपराधों से जुडी खबर अखबारों में आती रहती है! और दुख की बात यह भी है की अब ये खबरे ना हमे सहमाती है और ना ही हम पढ़ कर चौकते है? आखिर क्यों हमने लाचारी,बेबसी के साथ जीने का समझौता कर लिया है? या यूं कहे की हमने इसके साथ जीना सीख लिया है! आखिर क्यों हमने हथियार डाल दिए है,क्यों सवाल नहीं करते,क्यों हमारे मन में किसी त्रासद घटना को सुन कर संवेदना नहीं उपजती? अगर हमारे शहर की आबादी की बात करे तो अधिकतर आबादी युवा है जिनमे से अधिकाशतः किसी ना किसी रूप में किसी न किसी तरह के नशे की गिरफ्त में है! जिले की भौगोलिक स्थितियों की बात करे तो यहाँ अफीम की खेती नहीं हो सकती! ऐसे सूरते हाल में नशा आता कहा से है ये! यह कहने की जरुरत नहीं है की नशा कहा से,कैसे कैसे और किसकी देखरेख में शहर में आता है! फिर भी बात अगर चल ही पड़ी है तो ये जान लीजिए की किसी भी तरह के संदिग्ध सामान से लदा ट्रक शहर में किसी भी नाके से सौ,पचास का सुविधा शुल्क देकर शहर में बेरोकटोक आ सकता है,चाहे उसमे रासायनिक हथियार ही क्यों ना लदे हो!
पाठकों से निवेदन है की वह अपनी जान की कीमत शहर की आबादी को सौ रुपये से गुणा भाग देकर निकाल ले,और जो कीमत इस गणित में निकले वही असली कीमत है हमारे लोकतंत्र की व हमारी जान की! लोकतंत्र का खोखलापन पिछले कुछ दशको में उभर कर बड़ी ही तेज़ी से सामने आया है! और दुखद बात ये भी है की जिन लोगो के कंधो पर इसे बचने की जिम्मेदारी थी उन्होंने भी इसे भंवरी देवी बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोडी,ना जाने इसे ले जाकर किस भट्टी में जला आये नदी नाले में डूवो आये!
बात चली थी अंधेर नगरी चौपट राजा से तो हम अब इस पर आते है! आप भो सोच रहे होंगे की चौपट राजा तो समझ में आता है लेकिन ये अंधेर नगरी क्या है? तो जनाब आप ही सोचिये जिस शहर की अधिकाशतः आबादी युवा हो,जिस शहर में देश के अन्य शहरो के मुकाबिल सबसे ज्यादा समाज सुधारक,नेता बसते हो और वो शहर अन्याय के आगे गूंगा बना रहे तो और क्या कहे?
हमारे अडोस पड़ोस में हमारे घर पर अपराधी किराये पर कमरा लेकर बेखौफ शहर में अपराध करके चले जाते है लेकिन हम इतनी भी जहमत नहीं उठाते की पुलिस वेरिफिकेशन करवा ले? बाद में सांप निकल जाने पर लकीर पीटने से होता भी क्या है! और इन घटनाओ के बाद हमारे मूढमती नेता हल्ला करते है कही न कही वो सिर्फ माहौल ही खराब करते है या यूं कहे की उनका तो काम ही है पुलिस के गले में मरा हुआ सांप डालना है!
कुछ फ़र्ज़ हमारे भी बनते है देश के प्रति जिन्हें हालातों को देखते हुए लगता है की हम उनका कही विसर्जन कर आये है या फिर इस ईन्तजार में है कि कब ये बचा खुचा रास्ट्रवाद दम तोड़े तो हम भी कप्तान साहेब की तरह इसे श्रधांजलि दे(क्रमश)
जय हिंद
Saturday, July 2, 2011
साथियों
परमाणु बम बना कर हमने हमारी सरहदों को तो बाहरी दुश्मनों से महफूज कर लिया है.लेकिन जो देशद्रोही हमारी व्यवस्था में सरकारी पट्टा पहने छुपे बैठे है उनका क्या करे?
जिस मुल्क के हुक्मरान आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हो,जिस मुल्क में जन्म प्रमाण पत्र से भ्रष्टाचार शुरू होकर मृत्यु प्रमाण पत्र तक अनवरत बेरोकटोक चलता हो...
जिस मुल्क में दूध के कीमत गरीब की लाज से ज्यादा हो,जिस मुल्क में भूख अपनी अस्मत का सौदा मुट्ठी भर धान में कर लेती हो,जिस मुल्क में करोडो भूखे लोगो के खाया जा सकने वाला गेहू गोदाम में लापरवाही से सड जाता हो,जिस मुल्क में लोगो की जान उसके रखवाले पुलिस वाले नाको पर पचास पचास रुपये में नीलाम कर देते हो,जिस मुल्क में सियासत रास्ट्रीयहितो पर भारी पड़ती हो, जिस मुल्क के नौजवानों का खून बर्फ से भी ठंडा पड़ गया हो,जिस मुल्क में लोकतंत्र की कीमत चुनावो में दारू की एक बोतल लगायी जाती हो,जिस मुल्क में टीवी सीरियल रिश्तो पर भारी पड़ते हो,जिस मुल्क में शहीदों के ताबूत बेच खा लिए जाते हो,जिस मुल्क की राजधानी में हर दस मिनट में एक महिला के साथ बलात्कार होता हो,जिस मुल्क में सियासी दाव पेच रास्ट्रवादियों पर भारी पड़ते हो,जिस मुल्क में किसी व्यक्ति के तीन सो टुकड़े करने के बाद भी अभियुक्त लचर न्याय व्यवस्था के कारण इरादतन हत्या के दोष से बच जाते हो
जिस मुल्क की जेलों में आतंकवादियों की जमाई की तरह सेवा की जाती हो,जिस मुल्क की सडको के किनारे फुटपाथ,खम्बो पर देवी देवता,अल्लाह,पीर,पैगम्बर रातो रात अवतार ले लेते हो,जिस मुल्क में मंदिर मस्जिद इंसानियत पर भारी पड़ती हो,जिस मुल्क में जनहित के लिए अदालतों को विधायिका के श्चेत्र में दखल देना पड़ता हो,जिस मुल्क में जनता द्वारा चुनी गयी सरकार के मंत्री अमेरिका तय करता हो,जिस मुल्क के रक्षा मंत्री को विदेशो में अपराधियों की तरह तलाशी देनी पड़ती हो,जिस मुल्क में जांच आयोग की जांच के लिए भी आयोग पर आयोग बैठाने पड़ते हो,फिर भी जांच अधूरी रह जाती हो,जिस मुल्क में लाखो रुपये के घोटाले को अदालत में सिद्ध करने के लिए करोडो रुपये खर्च करने पड़ते हो,फिर भी दोष सिद्ध ना हो पाता हो,जिस मुल्क में प्रति व्यक्ति प्रति दिन २० रुपये आय का सर्वे करने के लिए अफसरों को हजारो रुपये प्रति दिन दे दिए जाते हो,
जिस मुल्क में कूड़ेदान से खाना उठा कर कुत्ते और आदमी एक साथ बैठ कर खाते हो,जिस मुल्क के सरकारी गोदाम लाखो टन अनाज से भरे हो और गरीब किसान भूख से मर जाते हो,जिस मुल्क में मारुती कार की कीमत रेल दुर्घटनाओ में मरने वालो के मुआवजे से ज्यादा हो,जिस मुल्क की ऐतिहासिक धरोहरे पीकदान मूत्रालय शोचालय में तब्दील हो गयी हो,जिस मुल्क में बस्ते का वजन बच्चे के कुल वजन से ज्यादा हो............
उस मुल्क की हिफाजत कोई सैनिक तो क्या खुदा भी फानूस बन कर नहीं कर सकता!
आखिर कब तक हम ये अन्याय चुप चाप सहते रहेंगे...................................
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह
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