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Sunday, November 6, 2011

अंधेर नगरी चौपट राजा


अंधेर नगरी चौपट राजा

हेमेन्द्र सिंह हेमू


"ये कैसी फिजा मेरे शहर की हो रही है
अपना साया भी अब खौफजदा करता है"
श्री गंगानगर शहर में जिस तरह नशेबाज़ी,सट्टेबाजी,अपराध बढ़ रहे है उन्हें देखते हुए कहना यही पड़ेगा की यह अंधेर नगरी है और इसका राजा चौपट है! आये दिन कोई ना कोई अपराधों से जुडी खबर अखबारों में आती रहती है! और दुख की बात यह भी है की अब ये खबरे ना हमे सहमाती है और ना ही हम पढ़ कर चौकते है? आखिर क्यों हमने लाचारी,बेबसी के साथ जीने का समझौता कर लिया है? या यूं कहे की हमने इसके साथ जीना सीख लिया है! आखिर क्यों हमने हथियार डाल दिए है,क्यों सवाल नहीं करते,क्यों हमारे मन में किसी त्रासद घटना को सुन कर संवेदना नहीं उपजती? अगर हमारे शहर की आबादी की बात करे तो अधिकतर आबादी युवा है जिनमे से अधिकाशतः किसी ना किसी रूप में किसी न किसी तरह के नशे की गिरफ्त में है! जिले की भौगोलिक स्थितियों की बात करे तो यहाँ अफीम की खेती नहीं हो सकती! ऐसे सूरते हाल में नशा आता कहा से है ये! यह कहने की जरुरत नहीं है की नशा कहा से,कैसे कैसे और किसकी देखरेख में शहर में आता है! फिर भी बात अगर चल ही पड़ी है तो ये जान लीजिए की किसी भी तरह के संदिग्ध सामान से लदा ट्रक शहर में किसी भी नाके से सौ,पचास का सुविधा शुल्क देकर शहर में बेरोकटोक आ सकता है,चाहे उसमे रासायनिक हथियार ही क्यों ना लदे हो!
पाठकों से निवेदन है की वह अपनी जान की कीमत शहर की आबादी को सौ रुपये से गुणा भाग देकर निकाल ले,और जो कीमत इस गणित में निकले वही असली कीमत है हमारे लोकतंत्र की व हमारी जान की! लोकतंत्र का खोखलापन पिछले कुछ दशको में उभर कर बड़ी ही तेज़ी से सामने आया है! और दुखद बात ये भी है की जिन लोगो के कंधो पर इसे बचने की जिम्मेदारी थी उन्होंने भी इसे भंवरी देवी बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोडी,ना जाने इसे ले जाकर किस भट्टी में जला आये नदी नाले में डूवो आये!
बात चली थी अंधेर नगरी चौपट राजा से तो हम अब इस पर आते है! आप भो सोच रहे होंगे की चौपट राजा तो समझ में आता है लेकिन ये अंधेर नगरी क्या है? तो जनाब आप ही सोचिये जिस शहर की अधिकाशतः आबादी युवा हो,जिस शहर में देश के अन्य शहरो के मुकाबिल सबसे ज्यादा समाज सुधारक,नेता बसते हो और वो शहर अन्याय के आगे गूंगा बना रहे तो और क्या कहे?
हमारे अडोस पड़ोस में हमारे घर पर अपराधी किराये पर कमरा लेकर बेखौफ शहर में अपराध करके चले जाते है लेकिन हम इतनी भी जहमत नहीं उठाते की पुलिस वेरिफिकेशन करवा ले? बाद में सांप निकल जाने पर लकीर पीटने से होता भी क्या है! और इन घटनाओ के बाद हमारे मूढमती नेता हल्ला करते है कही न कही वो सिर्फ माहौल ही खराब करते है या यूं कहे की उनका तो काम ही है पुलिस के गले में मरा हुआ सांप डालना है!
कुछ फ़र्ज़ हमारे भी बनते है देश के प्रति जिन्हें हालातों को देखते हुए लगता है की हम उनका कही विसर्जन कर आये है या फिर इस ईन्तजार में है कि कब ये बचा खुचा रास्ट्रवाद दम तोड़े तो हम भी कप्तान साहेब की तरह इसे श्रधांजलि दे(क्रमश)
जय हिंद

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