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Thursday, February 2, 2012


कुत्ता और आदर्शवाद
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अगर खाली पेट
आदर्शवाद से भर जाता तो
भूखी सडांध मारती गलियों में
दंगे नहीं होते
आदर्शवाद से सिर्फ पेट भरता है
हमारे खाए पीये अघाए
नेताओं का
जो वक़्त पड़ने पर किसी गरीब की
चिता की आग में भी
आदर्शवाद की खिचड़ी
पका सकते है
आदर्शवाद कुछ नहीं होता
होती है सिर्फ भूख
दो कुत्तो को या भूखो को
रोटी के लिए लड़ते देख
आदर्शवाद की बात सोचना
महापाप है
उनके लिए तो सिर्फ एक ही
आदर्श है कि
कैसे
बीच में पड़ा रोटी का वो
टुकड़ा
हाथ में आये

हेमू सिंह
श्री गंगानगर राजस्थान

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