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Sunday, November 6, 2011

अंधेर नगरी चौपट राजा


अंधेर नगरी चौपट राजा

हेमेन्द्र सिंह हेमू


"ये कैसी फिजा मेरे शहर की हो रही है
अपना साया भी अब खौफजदा करता है"
श्री गंगानगर शहर में जिस तरह नशेबाज़ी,सट्टेबाजी,अपराध बढ़ रहे है उन्हें देखते हुए कहना यही पड़ेगा की यह अंधेर नगरी है और इसका राजा चौपट है! आये दिन कोई ना कोई अपराधों से जुडी खबर अखबारों में आती रहती है! और दुख की बात यह भी है की अब ये खबरे ना हमे सहमाती है और ना ही हम पढ़ कर चौकते है? आखिर क्यों हमने लाचारी,बेबसी के साथ जीने का समझौता कर लिया है? या यूं कहे की हमने इसके साथ जीना सीख लिया है! आखिर क्यों हमने हथियार डाल दिए है,क्यों सवाल नहीं करते,क्यों हमारे मन में किसी त्रासद घटना को सुन कर संवेदना नहीं उपजती? अगर हमारे शहर की आबादी की बात करे तो अधिकतर आबादी युवा है जिनमे से अधिकाशतः किसी ना किसी रूप में किसी न किसी तरह के नशे की गिरफ्त में है! जिले की भौगोलिक स्थितियों की बात करे तो यहाँ अफीम की खेती नहीं हो सकती! ऐसे सूरते हाल में नशा आता कहा से है ये! यह कहने की जरुरत नहीं है की नशा कहा से,कैसे कैसे और किसकी देखरेख में शहर में आता है! फिर भी बात अगर चल ही पड़ी है तो ये जान लीजिए की किसी भी तरह के संदिग्ध सामान से लदा ट्रक शहर में किसी भी नाके से सौ,पचास का सुविधा शुल्क देकर शहर में बेरोकटोक आ सकता है,चाहे उसमे रासायनिक हथियार ही क्यों ना लदे हो!
पाठकों से निवेदन है की वह अपनी जान की कीमत शहर की आबादी को सौ रुपये से गुणा भाग देकर निकाल ले,और जो कीमत इस गणित में निकले वही असली कीमत है हमारे लोकतंत्र की व हमारी जान की! लोकतंत्र का खोखलापन पिछले कुछ दशको में उभर कर बड़ी ही तेज़ी से सामने आया है! और दुखद बात ये भी है की जिन लोगो के कंधो पर इसे बचने की जिम्मेदारी थी उन्होंने भी इसे भंवरी देवी बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोडी,ना जाने इसे ले जाकर किस भट्टी में जला आये नदी नाले में डूवो आये!
बात चली थी अंधेर नगरी चौपट राजा से तो हम अब इस पर आते है! आप भो सोच रहे होंगे की चौपट राजा तो समझ में आता है लेकिन ये अंधेर नगरी क्या है? तो जनाब आप ही सोचिये जिस शहर की अधिकाशतः आबादी युवा हो,जिस शहर में देश के अन्य शहरो के मुकाबिल सबसे ज्यादा समाज सुधारक,नेता बसते हो और वो शहर अन्याय के आगे गूंगा बना रहे तो और क्या कहे?
हमारे अडोस पड़ोस में हमारे घर पर अपराधी किराये पर कमरा लेकर बेखौफ शहर में अपराध करके चले जाते है लेकिन हम इतनी भी जहमत नहीं उठाते की पुलिस वेरिफिकेशन करवा ले? बाद में सांप निकल जाने पर लकीर पीटने से होता भी क्या है! और इन घटनाओ के बाद हमारे मूढमती नेता हल्ला करते है कही न कही वो सिर्फ माहौल ही खराब करते है या यूं कहे की उनका तो काम ही है पुलिस के गले में मरा हुआ सांप डालना है!
कुछ फ़र्ज़ हमारे भी बनते है देश के प्रति जिन्हें हालातों को देखते हुए लगता है की हम उनका कही विसर्जन कर आये है या फिर इस ईन्तजार में है कि कब ये बचा खुचा रास्ट्रवाद दम तोड़े तो हम भी कप्तान साहेब की तरह इसे श्रधांजलि दे(क्रमश)
जय हिंद

Saturday, July 2, 2011


साथियों
परमाणु बम बना कर हमने हमारी सरहदों को तो बाहरी दुश्मनों से महफूज कर लिया है.लेकिन जो देशद्रोही हमारी व्यवस्था में सरकारी पट्टा पहने छुपे बैठे है उनका क्या करे?
जिस मुल्क के हुक्मरान आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे हो,जिस मुल्क में जन्म प्रमाण पत्र से भ्रष्टाचार शुरू होकर मृत्यु प्रमाण पत्र तक अनवरत बेरोकटोक चलता हो...
जिस मुल्क में दूध के कीमत गरीब की लाज से ज्यादा हो,जिस मुल्क में भूख अपनी अस्मत का सौदा मुट्ठी भर धान में कर लेती हो,जिस मुल्क में करोडो भूखे लोगो के खाया जा सकने वाला गेहू गोदाम में लापरवाही से सड जाता हो,जिस मुल्क में लोगो की जान उसके रखवाले पुलिस वाले नाको पर पचास पचास रुपये में नीलाम कर देते हो,जिस मुल्क में सियासत रास्ट्रीयहितो पर भारी पड़ती हो, जिस मुल्क के नौजवानों का खून बर्फ से भी ठंडा पड़ गया हो,जिस मुल्क में लोकतंत्र की कीमत चुनावो में दारू की एक बोतल लगायी जाती हो,जिस मुल्क में टीवी सीरियल रिश्तो पर भारी पड़ते हो,जिस मुल्क में शहीदों के ताबूत बेच खा लिए जाते हो,जिस मुल्क की राजधानी में हर दस मिनट में एक महिला के साथ बलात्कार होता हो,जिस मुल्क में सियासी दाव पेच रास्ट्रवादियों पर भारी पड़ते हो,जिस मुल्क में किसी व्यक्ति के तीन सो टुकड़े करने के बाद भी अभियुक्त लचर न्याय व्यवस्था के कारण इरादतन हत्या के दोष से बच जाते हो
जिस मुल्क की जेलों में आतंकवादियों की जमाई की तरह सेवा की जाती हो,जिस मुल्क की सडको के किनारे फुटपाथ,खम्बो पर देवी देवता,अल्लाह,पीर,पैगम्बर रातो रात अवतार ले लेते हो,जिस मुल्क में मंदिर मस्जिद इंसानियत पर भारी पड़ती हो,जिस मुल्क में जनहित के लिए अदालतों को विधायिका के श्चेत्र में दखल देना पड़ता हो,जिस मुल्क में जनता द्वारा चुनी गयी सरकार के मंत्री अमेरिका तय करता हो,जिस मुल्क के रक्षा मंत्री को विदेशो में अपराधियों की तरह तलाशी देनी पड़ती हो,जिस मुल्क में जांच आयोग की जांच के लिए भी आयोग पर आयोग बैठाने पड़ते हो,फिर भी जांच अधूरी रह जाती हो,जिस मुल्क में लाखो रुपये के घोटाले को अदालत में सिद्ध करने के लिए करोडो रुपये खर्च करने पड़ते हो,फिर भी दोष सिद्ध ना हो पाता हो,जिस मुल्क में प्रति व्यक्ति प्रति दिन २० रुपये आय का सर्वे करने के लिए अफसरों को हजारो रुपये प्रति दिन दे दिए जाते हो,
जिस मुल्क में कूड़ेदान से खाना उठा कर कुत्ते और आदमी एक साथ बैठ कर खाते हो,जिस मुल्क के सरकारी गोदाम लाखो टन अनाज से भरे हो और गरीब किसान भूख से मर जाते हो,जिस मुल्क में मारुती कार की कीमत रेल दुर्घटनाओ में मरने वालो के मुआवजे से ज्यादा हो,जिस मुल्क की ऐतिहासिक धरोहरे पीकदान मूत्रालय शोचालय में तब्दील हो गयी हो,जिस मुल्क में बस्ते का वजन बच्चे के कुल वजन से ज्यादा हो............
उस मुल्क की हिफाजत कोई सैनिक तो क्या खुदा भी फानूस बन कर नहीं कर सकता!
आखिर कब तक हम ये अन्याय चुप चाप सहते रहेंगे...................................
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

Sunday, May 8, 2011

ये हमारे मुल्क हमारी कौम हमारी आजादी का मामला है

साथियों
अन्ना हजारे इस वक़्त सभी पार्टियों के नेताओ के निशाने पर है जिस तरह सभी दलदलो के नेताओ ने आम राय होकर इन्हें निशाने पर लिया है वो काबिले गौर बात है हमारे नेता कभी भी किसी मसले पर एक जुट नहीं होते है लेकिन अन्ना का मामला इसके उलट है जो एकता इन्होने यहाँ दिखाई है वो लुप्त हो गयी था पिछले काफी सालो से!
आखिर ऐसा कैसे हो गया ये एकजुट हो गए
इसका कारण है इन्होने राजनीती को धंदा बना रखा हैएऔर अन्ना इसी धंदे के खिलाफ बोले इन नेताओ के बिलबिलाने एकजुट होने का यही कारण है इनकी दुकानदारी पर संकट आ रहा था!
सवाल सिर्फ अन्ना पर नहीं है बल्कि उन नोजवानो पर भी है जो अन्ना के पक्ष में लामबंद हुए थे!
देश का कोई भी नेता नहीं चाहता की युवा राजनीती में भागीदारी करे और उनकी यही मुहिम है की कैसे भी इस गठजोड़ को तोडा जाये!
लेकिन आज का युवा इन दुरात्माओ के झांसे में नहीं आने वाला वो समझ चुका है इस चाल को!
युवाओ को आगे आना होगा और इन तथाकथित देशभक्त नेताओ से देश की बागडोर अपने हाथो में लेनी होगी नहीं तो ये भारत माता का आँचल भी नीलाम कर देंगे!
साथियों हमे अबिलम्ब एकजुट होना पड़ेगा क्योकि ये
हमारे मुल्क हमारी कौम हमारी आजादी का मामला है
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

आखिर हम किन लोगो के लिए लड़ रहे है?


साथियों
आखिर हम किन लोगो के लिए लड़ रहे है?
क्या उन लोगो के लिए जो वैचारिक रूप से ना सिर्फ विकलांग है,बल्कि मुर्दा भी है?
या उन २५% लोगो के लिए जो महंगी गाडियों में घुमते है,बड़े शोपिंग मोल में महंगे उत्पाद खरीदते है,बड़े बड़े बंगलो में रहते है?
या उन २०% लोगो के लिए जिनके पास देश की कुल जमा पूँजी का ८०% हिस्सा है ?
आखिर वे लोग कौन है जिनके लिए हम लड़ रहे है?
क्या ये वो लोग ७५% लोग है जो दिन भर हाड तोड़ मेहनत करते है,खेतो में काम करते है,फिर भी दो वक़्त की रोटी नहीं जुटा पाते?
आखिर वे सब कौन है?
क्या हमारी लड़ाई से सिर्फ हमे ही फायदा है,उन लोगो को नहीं है जो बिस्तर पर पड़े पड़े क्रान्तिया लाते रहते है?
आखिर हम ऐसे लोगो के लिए क्यों लड़े जिनमे आकाश छूने की कोई आकांशा नहीं है जो कटोरी में भरे पानी में तारो का अक्श देख कर चाँद तोड़ लेन की बाते करते है?
ऐसी जवानी पर लानत है जिसमे विद्रोह नहीं,वक़्त की मांग है खड़े खड़े तमाशबीन ना बने!
बिना संघर्ष के आज़ादी निखरती नहीं है,जो कौम जितनी लड़ाकू होगी वो उतना ही निखरेगी,और ये संघर्ष किसी व्यक्ति,देश समाज के नहीं बल्कि शोषण करने वाले शासको के विरुद्ध शोषित के हक में करना है!
सोचना है तो बड़े लक्ष्यों के बारे में सोचो,जैसा हम सोचेंगे वैसा ही पाएंगे,जैसा हम पाएंगे आखिर
वैसे ही हो जायेंगे,क्योकि हमे वैसा ही हो जाना होता है,जो हम होना चाहते है!
इस देश में गरीब के उत्थान के लिए जितनी योजनाये बनी है उतनी तो दुनिया के किसी हिस्से में नहीं बनी,फिर भी ना जाने क्यों गरीबो का उद्धार होता नहीं होता?
होता भी है तो बिचोलियों,दलालों का नेताओ का,सरकारी अधिकारियो का हैसियत के हिसाब से होता है..................
हमारे मुल्क की हुकूमत ने गरीबो को भी नीले,पीले,हरे,लाल कार्ड के रूप में बाट दिया है!
है तो ये सब के सब गरीब ही फिर क्यों इनके राशन कार्ड के रंग अलग अलग है!
शयद अंग्रेजो की बची हुई संतानों की संतानों ने अंग्रेजो की फूट डालो राज़ करो की नीति पर अम्ल कर लिया है,तभी तो गरीब इतने रंग के हो गए है!
हम जब तक एक नहीं होंगे,जरुरत के वक़्त अपने साथी का साथ नहीं देंगे तब तक किसी बदलाब या युवा क्रांति की उम्मीद ना रखे!
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

जब से सड़क पर तमाशा दिखने वाले मदारियों पर प्रतिबंध लगा है

साथियों
जब से सड़क पर तमाशा दिखने वाले मदारियों पर प्रतिबंध लगा है,बेरोजगार भूखे बन्दर(कलमाड़ी,राजा) राजनीति में आ गए है!
और उनका दावा है की उनकी नीतिया पारदर्शी है!लेकिन कुछ सिरफिरे लोग उन्हें नंगा कहते है!
साथियों खादी(कपड़ो)में क्या रखा है दाग लगने का डर रहता है!
वैसे हमे(आम भारतीयों)को क्या फर्क पड़ता है बन्दर रहे या सियार,लेकिन कम से कम ये दोमुहे सापो(शेख अब्दुल्ला,याशिन मालिक)जैसो से तो बेहतर है!
इनकी देखा देखी मेंढक(अमर सिंह) भी राजनीति में आ गए है,जब टर्राना शुरू करते है तो झींगुर(दिग्विजय सिंह,कपिल सिब्बल )को भी पीछे छोड़ देते है!
अभी बंदरो के मदारियों(मनमोहन सिंह)की वार्ता हुई थी भूखे भेडियो मानवता के दुश्मनों कश्मीर वाले मदारी जी के साथ!
कश्मीर वाले मदारी का कहना था की आप अपने शेर(फौजी)यहाँ से हटा ले इनसे हमारे भूखे भेडियो को जान का खतरा है,और जिन्हें फिर भी यहाँ रखा जाये उन शेरो के नाख़ून काट दिए जाये दांत घिस दिए जाये,गले में सांकल बाँध दी जाये ताकि हमारे प्रिय जानवरों को कोई नुक्सान ना हो,क्योकि हमने बड़ी मुस्किल से इन्हें पड़ोस (पाकिस्तान)से दूध ले ले कर पाला है,आपके शेरो से इनकी पन्नाधाय(हाफिज) को एलर्जी है!
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

भला हो आर्मी का जो हमे बचा लेती है,ये नेता तो हमारा फातिहा पढवाने में कोई कोर कसर अपनी तरफ से नहीं छोड़ते!


साथियों
कभी सोचा है अन्ना हजारे कहा लुप्त हो गए,आज कल नज़र नहीं आते?
इसका कारण है पैसा,उनके नाम पर जितना मीडिया कमा सकता था कमा लिया,अब वो आउट ऑफ़ डेट हो गए है,उनसे कमाई नहीं हो सकती,इसी लिए वो हाशिये पर धकेल दिए गए है!
मीडिया को रोज़ नए नायक की जरुरत होती है भले ही वो दिग्गी जैसे लोग हो या ओसामा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता!
फर्क सिर्फ कम होती टी.आर.पी से पड़ता है!
रोज़ पाकिस्तान हमे ललकारता है,सीमा पर गोली बारी करता है,लेकिन हम चुप रहते है पता है क्यों?
भारतीय राजनीती के शिखर पर ठंडा गोश्त(मनमोहन सिंह) काबिज है जिसमे गर्मी आने की गुंजाईश ना के बराबर है!
साथियों इस गन्दी राजनीती में गरम खून(युवा) जब तक झाड़ू लेकर नहीं उतरेगा तब तक इन देशद्रोही मकड़ियो से निजात पाना नामुनकिन है!
दिग्विजय एक टेप रेकॉर्डर है जो बो बोलता है,वो वो नहीं बोलता,उसके अन्दर लगी कैसेट बोलती है जो १० जनपथ देहली से डव की जाती है!
अमेरिका ने कहा है की वो सीमा पार करके आतंकवादियों को मारने की किसी भारतीय कार्यवाही का समर्थन नहीं करेगा!
बड़े दुःख की बात है पंडित जी खुद तो बैंगन खाए दूसरो को परहेज की नसीहत दे!
साथियों
हम क्या बोर्डर पार करेंगे?
हमने तो जब भी नहीं किया जब पाकिस्तानी कुत्ते हमारी सीमा में घुस कर हमरे पिछवाड़े पर गोली मार गए कारगिल में!
हमने तो तब भी नहीं किया जब मुंबई में आकर हमारी ही जमीन पर खड़े होकर हमारे ही मुह में मूत गए,अब क्या करेंगे!
भला हो आर्मी का जो हमे बचा लेती है,ये नेता तो हमारा फातिहा पढवाने में कोई कोर कसर अपनी तरफ से नहीं छोड़ते!
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

अल कायदा के उत्तराधिकारी की खोज ख़तम हो गयी है!


साथियों
पाकिस्तान से सूचना आ रही है की अल कायदा के उत्तराधिकारी की खोज ख़तम हो गयी है!
जब से अल कायदा के उतराधिकारी की खोज शुरू की थी तभी से दुनिया भर के आतंवादियों में इस पद को पाने की होड़ लग गयी थी!
गाजी बाबा ने तो नरक से भी आवेदन भेजा था,लेकिन वो ख़ारिज हो गया!
भारत की तरफ से दिग्गी लादेन और कपिल सिब्बल जवाहरी दावेदार थे!
आतंकवादी जगत में किसी ने भी इनकी दावेदारी को गंभीरता से नहीं लिया था,लेकिन हैरानी की बात है,दिग्गी लादेन सभी को पछाड़ते हुए शीर्ष पद पर काबिज हुए!
अंतिम दौर में दिग्गी लादेन का महा मुकाबला अल जवाहिरी से था!
इस महा मुकाबले में बम के द्वारा अधिक से अधिक लोगो को नुक्सान पहुचाने का प्रदर्शन करना था!
लेकिन दिग्गी लादेन ने बिना किसी बम के अपनी जुबान से ही १ अरब २५ करोड़ लोगो को नुक्सान पंहुचा कर ये साबित कर दिया की उनकी जुबान का मुकाबला परमाणु बम भी नहीं कर सकता!
कपिल सिब्बल जवाहरी ने इस जीत पर बधाई देते हुए कहा है की उन्हें तो आवेदन करते वक़्त ही पता था,दिग्गी लादेन ही जीतेंगे,उनकी गन्दी,बदबूदार जुबान का मुकाबला आतंवादियों का भी बम,दुनिया का कोई भी रासायनिक हथियार नहीं कर सकता!
सोनिया गाँधी ने इटालियन हिंदी में रास्ट्र को संबोधित करते हुए, इसे कट्टरपंथियों पर धर्मनिरपेक्षता की जीत बताया है!
दूसरी तरफ युवा तुर्क मिस्टर राहुल ने इसे देश के युवाओ की जीत बताया है!
लेकिन मायावती ने अम्बेडकर पार्क में सभा करके इस जीत का विरोध किया है और कहा है कांग्रेस दलित विरोधी है,उसने किसी दलित का नाम नहीं भेजा!
मौलाना मुलायम सिंह ने दिग्गी लादेन के चुने जाने की आलोचना की है और कहा है की कांग्रेस ने षडयंत्र पूर्वक रजा के माध्यम से रुपये खिला कर अल कायदा की कमेटी के निर्णय को प्रभावित किया है,और राडिया के जरिये गिलानी के विरुद्ध लॉबिंग की है,और मुस्लिम हितो को नुक्सान पहुचाया है!
करूणानिधि कुछ भी कहने के लिए उपलव्ध नहीं थे,क्योकि वह अपनी बेटी के साथ कोर्ट में थे!
आडवानी ने जिन्ना विवाद के बाद कुछ भी कहने से इनकार कर दिया है!
और आम जनता कुछ कहने की स्थिति में नहीं है जबसे उसने ये खबर सुनी है वो कौमा में है!
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

Monday, March 7, 2011

अफजल गुरु की फांसी की सजा रद्द की जाये




इस मांग का कारण है की वो अनजाने में ही सही लेकिन एक अच्छा काम करने जा रहा था,
वो काम था देश को इन नेताओ के चंगुल से आजाद करवाने का,अगर उसका प्लान कामयाब रहता तो देश को अनगिनत फायदे होते,इतने घोटाले जो इन नेताओ ने किये है वो नहीं हो पाते,अफजल गुरु अगर तुम कामयाब हो जाते तो तुम्हारी उपलव्धि भगवान राम के दशानन मर्दन से भी बड़ी होती,क्योकि उन्होंने एक बार में एक ही रावण मारा था तुम एक साथ सारे मार देते....
लेकिन मित्रा तुमने एक बड़ी गलती की जो तुमने हमारे नेताओ को आम आदमी समझा,तुम भूल गए ये आम आदमी नहीं दोमुहे सांप है जहा से भी पकड़ोगे डस लेंगे...!
तुम्हे धर्मबम धर्मबम ही खेलना था तो किसी चाय की थडी,रेलवे स्टेसन,बस स्टैंड पर ही खेल लेते,अगर कोई मर भी जाता तो कोई फर्क नहीं पड़ता,
बाबले तू बड़ा भोला है ये अमरीका नहीं है जो लोग तेरे धर्मबम से डर कर घर में छुपे रहेंगे,यहाँ सब को इतनी जल्दी है की पुलिस वाले घटनास्थल,लाशो का पंचनामा भी नहीं कर पाते और लोग आवाजाही शुरू कर देते है....
लाला इस देश में अगर १००,५० मर भी जाते है तेरे फट्टू बम से तो उससे कही ज्यादा ब्रेकिंग न्यूज़ के ख़तम होते होते पैदा भी हो जाते है,यहाँ कहा तू हमारी आबादी ख़तम करने चला था,तू भूल गया हमने प्राइमटाइम वाली ब्रेकिंग न्यूज़ के बीच वाले ब्रेक ब्रेक में ही देश की आबादी ११५ अरब कर दी,और तू नकली सा पटाखा ले कर चला था हमें ख़तम करने

लल्ले हमें तो कटे हाथ वाली पार्टी भी ख़तम नहीं कर पाई जिसने हमारे सभी पोषक तत्व इतने महंगे कर दिए की हम तक ना पहुच सके ताकि हमारी आबादी कुपोषण से ख़तम हो जाये,लेकिन हम वो चीज है जो निंदा रस पी पी कर ही जिंदा रह सकती है,कॉक्रोचो से ज्यादा हम प्राक्रतिक संतुलन बनाने में माहिर है,नहीं विश्वास होता तो हमारी फ़ूड चैन देख ले,जिसे कटे हाथ वाली पार्टी हर बजट में बदल देती है,और हम फिर भी संतुलन बना लेते है.....
तू दोनों तरफ से फेल हो गया,हम तो अपील कर सकते है इससे ज्यादा कुछ नहीं,क्योकि हमारी मांगे ५ साल में एक दिन सुनी जाती है,जो कभी पूरी नहीं होती....
इस्सी लिए मज़े कर दाल पी पी कर और खुश हो की तू भाग्यशाली है जो तुझे निट्ठले बैठे दाल मिल रही है,हम सारे दिन ऐसी की तैसी कराते है,दिन भर घिसते है फिर भी दाल मय्सर नहीं होती.. जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

Sunday, March 6, 2011


कल एक भाई ने मुझे से पुछा था की मै कौन हूँ,ये सुन कर मै भी सोचने लगा की मै कौन हूँ......
मै कौन हूँ ये तो नहीं पता मुझे पर इतना तो पक्का हो मै देशभक्त नहीं हूँ,क्योकि मेरे पास बंगला,बड़ी बड़ी गाडी नहीं है,पैसा नहीं है,.......!ये कोई कल्पना नहीं है साथियों अगर मै देशभक्त होता तो ये सब कुछ होता मेरे पास,विस्वास नहीं होता तो किसी राजनीतिक पार्टी के युवा सम्मलेन में जाकर देख लो...
कभी कभी इनमे भीड़ बढ़ाने के लिए मेरी जरुरत पड़ती है,सुंदर सा कार्ड भेजा जाता है मेरे पास,और मै इसी में खुश हो जाता हूँ की लेमोजिन वाले देशभक्त ने मुझे याद किया,इज्ज़त बख्शी....
जब मै वहा पहुचता हूँ तो सबसे पहले अपना फटा जूता छुपाता हूँ सबकी नज़र से और.और देशभक्त से नज़र बचा कर उस भीड़ में शामिल हो जाता हूँ जो देशभक्त के पीछे पीछे नारे लगाती चल रही होती है..और कोशिश करता हूँ किसी की नज़र मेरी फटी पतलून पर न पड़े इस लिए नारा मुह से लगाता हूँ और हाथ पैवंद पर रखता हूँ,आकाश में नहीं उठाता,हो सकता है ये देख कर किसी को मेरे कमजोर होने का अहसास होता हो चलो कोई बात नहीं..
अन्दर मंच पर बहूत सारे देशभक्त नए नए कलफ लगे कुरते पहन का बैठे होते है... और एक एक करके सभी अपने प्राइवेट कलमघिस्सुओ का लिखा युवा एकता के नाम से रटी रटाई विचारधारा को को धयान में रख कर लिखा गया भाषण गर्व से पढ़ते है,जिन सब्दो का उन्हें अर्थ भी पता नहीं होता.
इसी दरमयान मै और मेरे पास बैठे सैकड़ो भूक्कड़ इसी उधेड़बुन में लगे रहते है कब देशभक्तों का देश प्रेम ख़तम हो तो हम स्टाल में लेगा पकवानों का लुत्फ उठाये...
मै पहलवान भी नहीं हूँ क्योकि मुझे अपनी ताकत का अहसास तब होता है,जब सारे भूक्कड़ खाने की मेज की तरफ कूच करते है,और मै उन्हें चीर कर आगे नहीं बढ़ पता...
और बड़े दुःख की बात ये भी होती है सारे भुक्कड़ो के साथ धक्का मुक्की के बीच मेरी पतलून और फट जाती है.... एक हाथ आगे एक हाथ पीछे रख के बड़ा ही लूटापिटा सा घर लौटता हूँ..
मै कलमकार भी नहीं हूँ,क्योकि जब लिखने बैठता हूँ शब्द कही शितिज में खो जाते है,बहूत कोशिस करता हूँ शब्दों की माला गुथने की.पर गुथ नहीं पाता,बैठा बैठा फिर खाली कागज पर आढीटेढ़ी लकीरे खीचता रहता हूँ,अपने हाथ की उलझी आढीटेढ़ी रेखाओ की तरह जिसमे तकदीर का खाना विधवा की मांग की तरह खाली है..!

मै चित्रकार भी नहीं हूँ,जब भी चित्र उकेरने की सोचता हूँ,मन में कल्पना करता हूँ तो सिर्फ और सिर्फ अंतर्मन में जली हुई रोटी,सिल्वर की कटोरी,टूटी हुई खाट,घर्र घर्र करता टेबल फेन ,फटी हुई चप्पल,पैवंद लगी पतलून,एक झोपडी जिसकी छत्त बारिश के मौसम में रात रात भर रोती है ही नजर आता है,और वो सफ़ेद कागज मुझे देशभक्त के कुर्ते की तरह मुह चिढाता है,.....
मै लीडर भी नहीं हूँ क्योकि कोई सफेदपोश मुझे मंच पर चढ़ने नहीं देता,माइक पर बोलना to दूर की बात है...!
आखिर मै बला क्या हूँ,ये जानने के लिए मैंने बहूत रिसर्च की तो पता लगा की मेरी हरकते,और हालात भारत के आम आदमी से मिलते जुलते है,जो राशन डिपू,और सरकारी नल पर ही नेतागिरी,और पहलवानी कर सकता है या कभी कभार ठर्रा पी कर पडोशी से धींगामुस्ती करता है...

Friday, March 4, 2011




देश में कलमघिस्सुओ की कोई कमी नहीं है जो अपने फायदे के लिए अपनी कलम घिसते है खबर को सरकारी जामा पहनाने के लिए,इसके साथ साथ नीली स्याही को बदरंग कर देते है!
साथियों देश में ऐसे कलमकार बहूत कम बचे है जो अपने भीतर का आक्रोश और खून कलम में भर कर निष्पक्ष होकर लिखते है,और ये बड़ा दुर्भाग्य है ऐसे कलमकारों को कभी दाद नहीं मिलती,सिर्फ खाज मिलती है!
खाज वाले कुत्तो से,और ये खाज वाले कुत्ते दिन भर हाथी और शेर पर लगातार भोकते रहते है!
इससे हाथी और शेर पर फर्क तो कोई नहीं पड़ता परन्तु धव्निपरदुषण तो होता ही है ना?
हमें कुत्ते का मुह तीरों से भरना आता है....
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह



क्या कोई इस तस्वीर को लगातार दो मिनट देख सकता है? ये एक बांगलादेशी अध्यापक कि तस्वीर है, जिसके सर पर बम फोडा गया है! इसका अपराध सिर्फ ये था कि वोह एक हिंदू था, और उसने इस्लाम अपनाने से मना कर दिया था! ऐसे कई किस्से बांगलादेश में रोजाना होते है, वहां के १८% हिन्दुओ के पास केवल ३ रास्ते है, इस्लाम काबुल करो, देश छोड दो या दुनिया छोड दो........ बस्स!!!!
Photos from प्रत्यंचा : सनातन संस्कृति के साथ विकास की ओर____Rudra sharma

साथियों ये खबर पढ़ कर मेरे मुझे अपने अन्दर भरे धरमनिरपेक्षता रुपी विचार खोखले,और कमजोर लगने और पड़ने लगे है,इनकी हालत उस जड़ से आधे उखड़े पेड़ की तरह हो गयी जिसे अगर मेरे मुसलमान भाइयो ने सहारा नहीं दिया या आगे आ कर उन कुकर्मियो की निंदा नहीं की तो गिर जायेगा!धरमनिरपेक्षता को बचाने के लिए असफाक उल्ला की तरह आगे आओ,और निंदा करो,चुप मत रहो!धरमनिरपेक्षता को बचाना मेरे अकेले के बस का नहीं है तुम्हारा साथ बहूत जरुरी है.....!
लेकिन इस के साथ मै इंडिया,और बंगलादेश की सरकार से सवाल करता हूँ,की क्या उसे हिन्दुओ और गैर इस्लामिक लोगो के हालात दिखाई नहीं देते,अगर नहीं दीखते तो डूव कर मर जाओ,पर चुल्लू भर पानी में मत डूवना क्योकि वो किसी के पीने के काम आयेगा,तुम सरकारी सुलभ सोंचाल्य में डूवना,यही बेहतर होगा देश की अखंडता और एकता के लिए!
बंगलादेसी हुक्मरानों और उसके पिट्ठू कठ्मुल्लाओ तुम्हारा जनम हमारे ही हाथो हुआ है,और हमें पता है तुम्हारी पतलून में कितनी बड़ी बन्दूक है,कभी तोप की सीध में मत आ जाना....!
तुम नाली में बिजबिजाते कीड़े के शरीर में पड़े कीड़े से भी गए गुजरे हो जो उस निहत्थे मास्टर पर अपनी मर्दानगी दिखाते हो,कमीनो तुम्हारी मर्दानगी पाकिस्तानियो के आगे कहा चली गयी थी जो अपना पिछवाडा लिए हमारे पास आये थे,बोर्डर पर क्या तुम कटा सूअर खा कर आते हो या महाकाल के रोद्र रूप को देख कर तुम्हे दस्त लग जाते है जो भाग जाते हो बोर्डर खुला छोड़ कर..!
तुम्हारी मर्दानगी हमने देखी थी जब तुमने धोखे से हमारे जवानों को मारा था,फिर पलट कर हमारे जवानों ने जवाब दिया तो तुम अपनी मम्मी खालिदा जिया के लहंगे में जा कर छुप गए थे याद है ना,तुम्हारी मम्मी फिर हमारे बहादुर शाह जफ़र सरीखे अटल बिहारी जी के पास आई थी,शिकायत करने...!
और बंगाल्देशी हिन्दुओ लानत है तुम पर,जो तुम रोज़ रोज़ अपनी बहेन,बेटियों की इज्ज़त दाव पर लगाते हो,याद करो दिलीप सिंह,गुरु तेग बहादुर,रना परताप,रना संग,पृथ्वी राज चौहान,और उन १२० जवानों को जिन्होंने २००० पाकिस्तानी पेटेंट टंक में बैठे सुअरों को धुल चटाई थी,लड़कर मरोगे तो सहीद कहलाओगे.हथियार उठाओ बुद्ध नहीं महाकाल शिव बनो,बम का मुकाबला बम से,बन्दूक का मुकाबला बन्दूक से करो,ऐसे कीड़े की तरह जिंदा रह भी गए तो क्या फायदा,ये नहीं कर सकते तो नसबंदी करवा लो ताकि आने वाली पीढ़ी तुम्हारी नपुंसकता के बारे में ना जान पाए....
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

Thursday, March 3, 2011


गाँधी और भगत सिंह के बीच फसा हेमू
पूछता है सवाल तो
बिलबिलाते है कीड़े
संस्कृति के रहनूमाओ के मन में
और इतिहास मुह काला लिए
आ जाता है सामने
बापुवादियो की कुर्सी की चाह,भगत सिंह की आह,तिरंगे की राजनीती
आज छोड़ आया मै भी भगत सिंह के आदर्शो को
अलीगढ के बूचड़खाने में.....
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

Wednesday, March 2, 2011

भगत सिंह तुम फेल आदमी हो


भगत सिंह तुम फेल आदमी हो,तुम जिन आदर्शो और सिधान्तो की बात करते हो वो भी तुम्हारी तरह फेल है,क्योकि उनमे सिर्फ देशभक्ति है राजनीती नहीं,इसी कारण वो हर जगह फेल है!
तुम हालात को देख कर अपने सिधांत लिखते,क्या तुम्हे पता नहीं था की जो युवा तुम्हारे साथ तुम्हारे वक़्त में नहीं थे उनकी संताने तुम्हारे साथ भविष्य में कैसे होंगी!
तुम्हारे देशभक्ति भरे सिधान्तो की वजह से मै रोज बापू के बेटो के निशाने पर रहता हूँ,मुझे शिकायत है तुमने उसमे राजनीती क्यों नहीं जोड़ी!
और तो और तुम बेकार में फांसी चढ़ गए बिना लालच,तुम्हे राजनीती करनी थी ताकि हमे भी सत्ता का सुख मिलता,कही तुम भी चरखा ले कर बैठ जाते,क्यों जुल्म के खिलाफ पिस्तोल उठाई?
तुम्हारे सिधान्तो को कोई नहीं पढता क्योकि वो कीमत मांगते है,जज्बा मांगते है त्याग मांगते है,तुम्हे भी अपने समकालीन नेताओ की तरह सिधांत गढ़ने चाहिए थे,जिनमे सब कुछ मिलता हे मिलता है खोना कुछ नहीं पड़ता!
और तो और तुम्हे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दू की आंशिक रूप से आजाद इंडिया की सरकार की नज़र में तुम्हारी कीमत एक रुपये,दो रुपये से ज्यादा नहीं है और दूसरी तरफ तुम्हारे दौर के बकरी वाले बाबा हजारो पर छाए हुए है,अगर मेरा ख़त पढ़ रहे हो तो दोबारा जन्म मत लेना, नहीं तो सरकार तुम्हे आतंकवादी कह कर जेल में सडा देगी,फांसी भी नहीं देगी!
ये सब लिखते हुए मेरी आँखों में आंसू है तुम्हारे लिए,कलम भी डगमगा रही है,लेकिन भगते भाई मै मजबूर हूँ तुम्हारे सच्चे सिधान्तो की लाश अब और नहीं ढो सकता,मेरे लिए खुद की रोज़ रोज़ बेइजती करवाना मुश्किल है,भाई शेर को कुत्तो ने चारो तरफ से घेर रखा है,आखिर कब तक वो अकेला इनसे लडेगा
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

Monday, February 28, 2011


हिंसा का सिधांत
हमारा देश निरंतर प्रगतिशील है,और हर दशक में इसकी जरूरते,समस्याऐ बदलती रहती है,इनमे से कुछ समस्याओ का हल होता है कुछ अनुत्रित सी सुरसा की तरह मूह बाये खड़ी रहती है,लेकिन जनाक्रोश जब बढ़ता है जब समस्याऐ हल नहीं होती और उनका अम्बार लग जाता है,और हुक्मरान उनको सुलझाने,हल करने की गंभीर कोशिश नहीं करते,जिसकी वजह से हुक्मरान और आवाम के दरम्यान दूरिया बढती चली जाती है.
फिर जरुरत महसूस होती है आवाम को हुकूमत के बदलाब की,लेकिन हुक्मरान बदलाब आने नहीं देना चाहते ,खटमल की तरह कुर्सी की गद्दी से चिपके रहते है,
समस्या और दूरिया जब बढती चली जाती है तो संघर्ष में तब्दील हो जाती है,इस संघर्ष की रूपरेखा और हथियार इस बात पर निर्भर करते है की हुक्मरान ने दमन का कौन सा तरीका अपनाया है और चुना है!
अगर हुक्मरान ने बन्दूक के सहारे दमनकारी रक्तजनित तरीका अपनाता है तो अमूमन शोषित वर्ग भी बन्दूक उठा लेता है,फिर जो हिंसा होती है उसका जिमेदार सिर्फ पीड़ित वर्ग अकेला नहीं होता,उसकी जिमेदारी हुकूमत की भी होती है!
फिर अकेले शोषित को दोष देना कहा तक उचित है,कहा का न्याय है,साश्त्रो में लिखा है मातृभूमि की रक्षा के लिए हथियार उठाना धर्म है.....(क्रमस)
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

Sunday, February 27, 2011


यह दौर है भरोसे के त्रासद अंत का
यह दौर है भरोसे के त्रासद अंत काए संबंधों और संवेदनाओं के लगातार छीजते चले जाने का। इस तरह का रोना प्रबुद्ध चेतनाकी दुनिया में फर्ज अदायगी की अक्षर परंपरा बन चुकी है। पिछले तकरीबन दो दशकों में हमारा समय और समाज इन स्थितियों से इतनी बार दो.चार हो चुका है कि अब न कोई सनसनी उसे सहमाती हैए न किसी त्रासद खबर पर वह चौंकता है। बावजूद इसके कहना यही पड़ेगा कि भीतर तक पसर जाने वाले जिस स्याह और क्रूर परिवेश को रचने व उसके साथ जीने की लाचारी हम चाहकर भी नहीं लांघ पा रहेए वह मानवीय चेतना के इतिहास का सबसे बड़ा परीक्षाकाल है।

काश विभाजन दिलो की वजाय सिर्फ जमीन,साहित्य,भाषा,इंसानों का होता तो बेहतर रहता....
तब के लगे ज़ख़्म आज तक नहीं भरे,रह रह कर इनमे टीस उठती है.जिस तथाकथित धर्म की सनक पर सवार होकर दो मुल्को का निर्माण हुआ,वो सनक पाकिस्तान को तो ले डूबी,अब उसी रास्ते की और हम भी अनजाने में कदम बढा रहे है,उन्होंने देश से बड़ा धर्म को समझा नतीजा भी भोग रहे है

उम्र के इस अंतिम पड़ाव पर
उम्रकैद की सजा भुगत रहा हूँ मै
ठहरा हुआ वक़्त भी एक ना एक प्रशन
खड़े कर देता है
बहरूपिया बनकर खुद को बचाता हूँ मै
कितना मुश्किल है जीना
एक पेपरवेट की तरह पड़े रहना
विनती तो है उस खुदा से जो जल्दी
मौत का जेवर पहना दे
इस मुर्दा मुल्क से उठा दे
टोपी उठा कर फिर सजदा कर रहा
हूँ मै
उम्र के इस अंतिम पड़ाव पर
उम्रकैद की सजा भुगत रहा हूँ मै
जय क्रांति जय हिंद
हेमू

बड़ी ही सफाई से बापुवादियो ने कथित बापू को मिश्र की क्रांति में फिट कर दिया...
वह शायद ये भूल गए की इस अति नाटकीय घटनाक्रम का सुखद अंत वहा की जनता की मेहनत का परिणाम है और कैंसर से जूझते तानाशाह का लाचारी भरा समर्पण है !
अगर वहा कोई हिंसा नहीं हुई तो उसका कारण तानाशाह की दूरदर्शिता थी,वो समझ चूका था की अगर शांतिपूर्वक बात नहीं मानी तो जनता किसी चौक चोराहे पर लटका देगी!
मै बापुवादियो से पूछना चाहता हूँ की आप हर सफल आन्दोलन का श्रेय बापू के विचारो की विजय के रूप में बापू को क्यों दे देते हो?यह क्यों भूल जाते हो क्रांति का हथियार परिस्तिथिया तय करती है,और पटकथा हालत लिखते है.!
आपके बापू मिश्र से आगे का रास्ता भूल गए थे क्या जो लीबिया नहीं पहुचे,या वहा की जनता का दिमाग ख़राब हो गया था,जो उन्होंने हथियार उठा लिए,अपनी कुन्षित विचारधारा से देश का बेडा गर्क तो कर ही दिया है दूसरो को तो छोड़ दो,और ये अर्नगल प्रलाप बंद करो!
स्विस बैंक से पैसा तो आता रहेगा,पहले गरीब का हाथ वापस लौटा दो!
जय क्रांति, जय हिंद
हेमू

कल अमेरिका वाली बहिन जी गाँधी गाँधी कर रही थी आज उन्हें और उनके देश के पापा ओबामा को कौन सा मच्छर काट गया,या गाँधी के सिधांत दो दिन में भूल गए,नकली गांधीवादियों ने असली वाले की ऐसी की तैसी कर के रखी है.
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

विश्व शांति का दरोगा अब बम वर्षा करेगा

अमेरिकन साम्राज्यवाद के विरोधी लीबिया के तानाशाह कर्नल गद्दाफी गृह युद्ध जैसी स्तिथि में फंसे हैं। अमेरिका को आज जनता के मानवाधिकारों की याद आने लगी है। इसके पूर्व ईराक में परमाणु शस्त्रों की बात प्रचारित कर अमेरिकन साम्राज्यवाद ने निरस्तीकरण के नाम पर लाखों नागरिकों की हत्या कर ईराक पर कब्ज़ा कर लिया है। मिस्त्र, बहरीन व टयूनेशिया जैसे मुल्कों में उसके पिट्ठू तानाशाह थे और उन तानाशाह के स्थान पर वह नए लोगों को स्थापित करना चाहता था। महंगाई बेरोजगारी के खिलाफ जनता की आवाज को सहारा देकर अमेरिकन साम्राज्यवाद ने नेतृत्व परिवर्तन कर अपनी पकड़ मजबूत की है। बहरीन में तीस हजार अमेरिकी सैनिक हैं। सैकड़ों मिसाइल्स तैनात हैं जिनका रूख ईरान की तरफ है। मिस्त्र में अमेरिकन खुफिया एजेंसी सी.आई.ए का सबसे बड़ा यातना सेंटर है। अब वहां जन असंतोष के नाम पर अपने विरोधी मुल्कों पर कब्ज़ा करना चाहता है। किसी देश की संप्रभुता को नष्ट करने के लिए उसके पास मानवाधिकार निरस्तीकारण लोकतंत्र, न्याय, स्वतंत्रता जैसे हथियार हैं जिनके बहाने वह अपने विरोधी मुल्कों में अपनी पिट्ठू सरकार स्थापित कराने का कार्य करता रहा है। आज उसी हथियार का सहारा लेकर विश्व शांति का दरोगा लीबिया पर बम बरसाने का कार्य करने की योजना बना रहा है। इसकी पुष्टि अमेरिकन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता फिलिप क्राउले ने की है। लीबिया पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने का काम शुरू हो गया है। दुनिया को नियंत्रित करने के लिए उसकी पिट्ठू संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ ने बड़ी तेजी से कार्य करना शुरू कर दिया है लेकिन जब वियतनाम, अफगानिस्तान व ईराक जैसे मुल्कों की बात आती है तो संयुक्त राष्ट्र संघ कि कोई हैसियत नहीं रहती है बस वो कोरी बयानबाजी कर के रह जाता है।

सुमन
लो क सं घ र्ष

जंगल में शेर और हाथी जब सैर पर निकलते है तो बहूत से कुत्ते और गीदड़ उन्हें मार्ग में मिलते है जो की भोक भोक कर उनके सव्र का इम्तिहान लेते है,लेकिन शेर और हाथी कभी पलट कर जवाब नहीं देते,अपनी राह चले जाते है!
लेकिन इस मुठभेड़ में कुत्तो और गीदड़ को कृतिम बहादूरी की गलतफहमी हो जाती है की शेर और हाथी डर गया,साथियों शेर और हाथियों की संख्या हमेशा कुत्तो और गिदडो से कम होती है,और इससे उनके राज़ पर कोई फर्क भी नहीं पड़ता...!
दोनों हे वक़्त आने पर सब कुछ रोंद देते है ,हमे भी किसी के मुह लग कर अपना वक़्त बर्बाद नहीं करना,रोंद कर आगे बढ़ना है,हाथी और शेर का काम नहीं है भोकना,अब वक़्त आ गया है पगड़ी संभालने का गंजे सिर ने बहूत राज़ कर लिया,अभी नीली स्याही से उम्मीद बची हुई है.लेकिन जिस दिन भी ये उम्मीद भी जाती रही तो देश की सत्ता पगड़ी के हाथ में लेने के लिए हमे वो हर काम करना होगा जो नातिक्तावादियो को गलत लगता है...!
क्योकि ये हमारे मुल्क हमारी आवाम हमारी कोम का मामला है!
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

Thursday, February 17, 2011

दो व्यक्तियों का नजरिया


नजरिया किसी का किसी भी मामले में एक हो यह जरुरी नहीं,प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने नजरिये से सोचता है!सिक्के को बीच में रख कर देख रहे दो व्यक्तियों का नजरिया हमेशा एक दुसरे के उल्ट होता है,क्योकि एक व्यक्ति उसमे हेड देख रहा होता है दूसरा व्यक्ति उसमे टेल,दोनों ही अपनी अपनी जगह सही होते है क्योकि वो जो देख रहे होते है,वो उनकी नज़र में सही होता है !
जरुरत तो ये है की वो अपनी पोज़िसन बदल कर देखे तो ये बात साफ़ हो जाएगी की जो वो देख रहे थे उसके विपरीत वो चीज थी जो वो नहीं देख पा रहे थे,जिसके पीछे अनुचित वहस कर रहे थे!
लेकिन ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है की दोनों अपनी पोज़िसन बदलने को तैयार रजामंद हो जाये,इसका कारण अहम् है जो व्यक्ति को आत्मअभिमानी बना देता है जो की सवस्थ वहस का दुश्मन है!
अक्सर जब वहस शुरू होती है तो वह थोड़ी देर में मूल मुद्दों से भटक जाती है और वहा आकर खड़ी हो जाती है जो गैरजरुरी मुद्दे होते है!
अब्बल तो हमारे मुल्क में अवाम बहस चाहता नहीं है,अगर फिर भी अगर किसी वैचारिक मंच पर किसी मामलात पर वहस शुरू होती है तो कुछ गैरजरूरी लोग उसमे जाति, वंश, प्रान्त, सभ्यता, संस्कृति,धर्म घुसेड देते है और और मंच को राजनेतिक अखाडा बना देते है,और इसी दरमयां मूल मुद्दा किसी कोने में पड़ा दम तोड़ देता है,और तो और उन्हें ये भी लगता है फेसबुक, ऑरकुट किसी क्रांति को लाने में सहायक नहीं है, आज का युवा इन लोगो से सवाल पूछता है अगर ये सही है तो आप यहाँ क्या कर रहे हो जब आपको इन बातो से कोई सारोकार नहीं है!बात अगर महापुरुषों की आती है तो हम स्वतन्त्र है,की हम किसको चुने,और ये जरुरी भी नहीं वो चुनाव गाँधी का हो.....
जय क्रांति,जय हिंद
हेमू ९०२४१११९६६

Tuesday, February 15, 2011


तेरे खंडे ने जिना दे मुह मोड़े
आज फिर ओ सानु आज ललकारदेने
बाजा वालिया बाजा नु भेज मुडके
तितर फिर उडारिया मारदेने

भूखे भेडिये


आज सुबह एक खबर देख कर मन बेहद विचलित हो गया। ये सिर्फ एक खबर नहीं थी, एक तमाचा था, एक सवाल था कानून व्यवस्था पर। खबर यह थी कि तीन लड़कों ने एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार की कोशिश नाकाम रहने पर उसके हाथ पैर काट दिये। सरसरी तौर पर तो यह भारत में रोज होने वाली एक आम घटना है। लेकिन ये घटनाएं रोज क्यों होती है। यकीनी तौर पर इसका कारण है नकारा कानून, नकारा पुलिस, मुर्दा अवाम।
अगर ये लड़की आज मर जाए तो बेहतर है। नहीं तो जब तक केस चलेगा, तब तक हर पल हर रोज मरेगी। शारीरिक तौर पर तो इसका उत्पीड़न हो ही चुका है, मानसिक बलात्कार हर नई सुबह, हर नए सवाल के साथ होगा। आजादी से आज तक हम क्यों कोई कारगर कानून नहीं बना पाए। जो इन बलात्कारियों के खिलाफ हथियार साबित होता। इतना बड़ा जुर्म करने के बाद भी अगर इन लड़कों को सजा मिलेगी भी तो 5 या 10 साल की। क्या यह सजा पर्याप्त है? क्या इससे उस लड़की को न्याय मिल पाएगा? होना तो यह चाहिए कि पीड़ित लड़की को 30 दिन में न्याय मिले और दोषियों को कम से कम फांसी की सजा सुनाई जाए। क्योंकि जिस दिन किसी लड़की से बलात्कार होता है। उसी दिन उसकी मानसिक हत्या हो जाती है। मैं मेरी बेटी पर जो कि मात्र 6 साल की है, हर वक्त चौकस नजर रखता हूं कि कहीं किसी भूखे भेडिये की नजर उस पर न पड़ जाए। जब मै घर से बाहर होता हूं मेरी पत्नी उस पर नजर रखती है, स्कूल में उसका भाई रखता है। वो तो यह भी नही समझती कि हर वक्त उसके साथ कोई न कोई क्यो होता है। ये डर क्यों हम क्यों नही खत्म नही कर पाएं। क्यों हम इन भूखे भेडियों से निपटना नही सीख पाए। क्यो हमने इन भेडियों के सामने हथियार डाल दिये है और बेटियों को पेट में ही निपटाना शुरू कर दिया। क्या ये हल था समस्या का या लाचारी थी या बुजदिली थी? अब वक्त आ गया है, वक्त रहते जाग जाने का। हो सकता है कल जिसके साथ बलात्कार करके ऐसा हाल किया जाए वो हमारी मां, बहन, बेटी भी हो सकती है। वध के लिए हथियार उठाना धर्म है। नपुंसक सरकार, नाकारा कानून और पुलिस अगर अवाम को इंसाफ दिला पाने में ऐसे ही असफल होती रही तो वो दिन दूर नही जब लोग अपने हाथ में हथियार उठा लेंगे। बलात्कारियों के खिलाफ नरम और अहिंसक कानून एक बडा जुर्म है, मानवता के खिलाफ। इन्हे तालिबानी तरीके से ही सजा देनी होगी। विकसित होने की दौड़ में हम मानवता को बहुत पीछे छोड़ आए है। अच्छा होता हम आदिमानव ही रहते।

रातो रात सिर्फ मौसम बदलते है विचारधाराए नहीं बदलती, और जो विचारधाराए रातो रात बदल जाती है वो कुटिल राजनीती होती है, देशभक्ति नहीं होती!
अक्सर एक गाँधी नामे का अनुत्रीत प्रशन बार आज का चुनोती के बार भूतकाल से उठकर बर्तमान में चला आता है.. होना तो यह चाहिए की इस सवाल को आज का युवा चुनोती के रूप में लेकर हल करे लेकिन वो कुछ कुतर्कियो के छलाबे में आकर इस सवाल को उठाने वाले व्यक्ति की निष्ठां पर ही सवाल उठा देता है!
गाँधी की कथनी और करनी में विरोधावास इससे बात से सावित होता है, जिस रामराज्य की कल्पना वो करते थे,उस रामकथा के महानायक भागवान राम ने रावण के वध के लिए अश्त्र उठाये थे जो की गाँधी की अहिंसावादी नीति के खिलाफ था,अगर ये मान भी लिया जाये गाँधी ने इस बात को नजरंदाज करके रामराज्य और रामकथा में से चुनिन्दा बाते हे जीवन में चुनी जो उन्हें अच्छी लगी तो उन्होंने भगत सिंह के बम्ब को नजरंदाज क्यों नहीं किया क्यों उनकी निष्पक्ष देशभक्ति की भावना का सम्मान नहीं किया,क्यों उन जैसे महान क्रांतिकारियों को उदंड बच्चा कह कर उनकी सहादत का मखोल उड़ाया?
अहिंसा एक नपुंसक सोच है जो जबरन देश पर थोपी जा रही है,कश्मीर,तिब्बत वारानाशी,मुंबई अटैक इसी सोच का नतीजा है हम अहिंसक शांति के दूत बने अपने घर में पिटते रहते है क्योकि हम सीमा पार नहीं करना चाहते इससे गाँधी के अहिंसावादी सिधांत का मजाक उड़ता है !
गाँधी के अहिंसावादी सिधांत के अनुसार भगवान् राम को लंका जा कर रावण के महल के आगे धरना देना चाहिए था और मांग करनी चाहिए थी की रावण अगर सीता माँ को नहीं छोड़ता पूर्ण स्वतन्त्रता नहीं भी देता तो कम से कम उनसे अशोक वाटिका में मिलने की आजादी दे,जब तक उसका हर्दय परिवर्तन पूर्ण स्वतन्त्रता के लिए न हो
भूतकाल की बात अगर भूतो पर छोड़ दे वर्तमान की बात करे तो ताज होटल के बहार हमारे कमांडो को हाथ में फूल लेकर मौर्चा संभालना चाहिए थाय पाकिस्तान के बोर्डर पर इन आतकवादियो के खिलाफ धरने पर बैठना चाहिए था,हमारे कमांडो ने देश के खातिर हतियार उठाकर क्या गंधिनीति का अपमान किया है,अगर सही किया है तो भगत सिंग ने काया गलत किया था?
जो व्यक्ति अपना घर न संभाल सका हो उससे आपने अपना देश शोंप दिया दिया है अब जो हो रहा है उसके लिए रोने से क्या फायदा!
दस आतंकवादी हमारे घर में घुस कर हमें मरते है,और हम अमरीका के पास जाकर दुहाई देते है. लानत है ऐसी मर्दानगी

आज का युवा बातों का सूत कातने में विश्वास नही करता, कर्म करने में यकीन करता है। मगर आज युवा शरीर में बूढ़ी मानसिकता वाले लोग बातें तो क्रांति की करते है, मगर चाहते यही है कि भगतसिंह पड़ोसी के घर में पैदा हो और हम गांधी की तरह तथाकथित देशपिता बन कर नोटों पर छा जाएं। इस मानसिकता से पीड़ित लोग बेवजह की नुक्ताचीनी में टाईम पास करने में लगे रहते है। ये लोग एक बने बनाए रास्ते पर चलना चाहते है क्योकि उनकी बौद्धिकता पर वृद्धता हावी हो चुकी है। राजनीति बहुत हो चुकी, 64 साल का भारतीय इतिहास इस बात का गवाह है, अब युवाओं को देश की खातिर कर्म करने दो, हम युवाओं को असफल क्रांतियां नही चाहिए। आज का युवा लोरिया नहीं सुनना नहीं चाहता।
क्रांति से हमारा अर्थ है- आमूलचूल परिवर्तन। यह पारिवारिक स्तर से शुरू होकर राष्टीय स्तर तक जाएगी, तो आप जैसे बूढी सोच वालों को आज के युवाओं के खिलाफ लामबद्ध हो जाना चाहिए क्योंकि पहली बगावत आपके घर से ही शुरू हो चुकी है।
रही बात वेलेंटाइन डे जैसे उत्सवों की तो आप जैसे लोग नकल भी सही ढग से नहीं कर सके और प्रेम को बाजारू बना कर छोड़ दिया। शीला मुन्नी जैसे गीत आप जैसे लोगों की दमित वासनाओं का परिणाम है। आज का युवा पीपली लाइव, माय नेम इज खान, थ्री इडियट के रूप में सामाजिक बदलाव का हामी है और यह बहुत जल्द आकर रहेगा।
1857 की क्रांति को सच्चाई को न समझने वाले लोग देश में क्रांति की पहली चिंगारी मानते है। कोई आज के युवा को यह बताए कि यह चिंगारी कौन सी नदी में लगाई थी, जिससे 70 साल बाद विस्फोट हुआ। आज का युवा बूढी मानसिकता वालों को इस बात का हक नहीं देता कि वो युवाओं के जज्बात, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू, खुदीराम बोस, रासबिहारी बोस, उद्धम सिंह, मदन लाल, आशा भाभी, प्रेमलता, मालती, आजाद, बोस जैसे युवा जांबाजांे के देश के युवाओं को हिजड़ा कहे, क्योकि उसने ऐसा कह कर इन अमर जवानों के परिवार के युवाओं को गाली दी है। उनका देश जो कि उनका परिवार है, इस परिवार का सदस्य युवा हिजड़ा नहीं है।
आप जैसे बूढ़ी मानसिकता वाले महानुभावों को आज के युवा की यह खुली चेतावनी है कि या तो हमारे साथ आ जाए वरना ’हमसे जो टकराएगा,मिट्टी में मिल जाएगा।’
शूरा सो पहचानिए, जो लड़े दीन के हेत
पुर्जा पुर्जा कट मरे, कभी न छाड़े खेत
जो धो प्रेम खेलन का चाव
सिर धर तली गली मोरी आओ
जय क्रांति, जय हिन्द

'भगत सिंह की फाँसी गांधी की नैतिक हार'


आज़ादी के आंदोलन में भगत सिंह के समय में दो प्रमुख धाराएं थीं. एक निश्चित रूप से महात्मा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की धारा थी जो उस वक्त सबसे ज़्यादा प्रभावशाली और व्यापक पहुंच वाली थी.दूसरी धारा क्रांतिकारियों की धारा थी जिसके एक प्रमुख नेता थे भगत सिंह. हालांकि इस धारा का आधार उतना व्यापक नहीं था जितना कि कांग्रेस का था लेकिन वैचारिक रूप से क्रांतिकारी बहुत ताकतवर थे.इस दौरान कांग्रेस के गरमदल के नेता, बिपनचंद्र पॉल, लाला लाजपत राय और बालगंगाधर तिलक गुज़र चुके थे और नरमदल वालों का वर्चस्व था जिसकी पूरी लगाम गांधी के हाथ में थी. गांधी इस वक्त अपने दौर के चरम पर थे.गांधी शांतिपूर्वक नैतिकता की लड़ाई लड़ रहे थे जो अंग्रेज़ों के लिए काफ़ी अच्छा था क्योंकि इससे उनकी व्यवस्था पर बहुत ज़्यादा असर नहीं पड़ता था पर मध्यमवर्गीय नेताओं की इस नैतिक लड़ाई का आम लोगों को भी बहुत लाभ नहीं मिलता था.महात्मा गांधी गुजरात के थे. अहमदाबाद उस वक्त एक बड़ा मज़दूर केंद्र था. एक सवाल पैदा होता है कि वहाँ के हज़ारों-लाखों लोगों के लिए गांधी या पटेल ने कोई आंदोलन क्यों नहीं खड़ा किया. बल्कि कुछ अर्थों में गांधी ने वहाँ पैदा होते मज़दूर आंदोलन के लिए यही चाहा कि वो और प्रभावी न हो. मज़दूर आंदोलन में सक्रिय इंदुलाल याज्ञनिक जैसे कांग्रेसी नेता भी उपेक्षित ही रहे.नेहरू थोड़ा-सा हटकर सोचते थे और ऐसे मॉडल पर काम करना चाहते थे जो व्यवस्था में बदलाव लाए पर इस मामले में वो कांग्रेस में अकेले ही पड़े रहे

आज का युवा न बैल है ना भैस



समाज कभी स्थिर नहीं रहता उसमे कुछ ना कुछ परिवर्तन होता रहता है,जोकि लगातार निरंतर चलने वाली एक प्रकिर्या है,ये कोई चमत्कार या जादू नहीं है बिलकुल सरल प्रकिर्या है,जिस समाज में परिवर्तन नहीं होता वह मुर्दा है,सामाजिक मानसिक स्तर पर क्योकि मुर्दा सोच और मुर्दा जिस्म ही हरकत नहीं करते!
भारत में लगातार परिवर्तन हो रहा है जोकि इस बात का गवाह है भारत का आवाम जीवंत है और निरंतर प्रगतिशील है जिस युवा क्रांति की हम बात करते है वो कोई अचानक आने वाली नहीं थी उसकी प्रस्ठभूमि १९३१ में तैयार हुई थी बस अब वक़्त आ गया है उसके आने का,ये तो हमे तय करना है हम नए का स्वागत करते है या आलोचना करते है!
आलोचना से हमारी कलम घबराती नहीं है, वो जवाब देना जानती है, अक्सर कुछ तथाकथित समाजबादी सुधारबादी इससमे रोड़े अटकाने की कोशिश करते है उन्हें ये बर्दास्त नहीं होता की कोई युवा उनका नेत्र्त्ब करे,वो अपना सारा समय इसी उधेड़बुन में ख़राब करने में लगे रहते है की कैसे युवा को नीचा दिखाया जाये,अपमानित किया जाये,आज का युवा इन तथाकथित नतिक्ताबादी रहनुमाओ को आगाह करता है की वो चाहे कितना जोर लगा ले आज का युवा रुकने वाला नहीं!
वो तो परवाना है जलना जानता है, जलने के डर से उड़ना नहीं छोड़ता,भैंस जब पोखर में बैठती है तो पानी में तरंगे उठती है और वो उन तरंगो को सुनामी समझ लेती है ये उसकी गलती नहीं है उसके पूर्वजो ने उससे मूक भाषा में यही समझाया था वो तो उसका अनुसरण कर रही होती है...
आज का युवा न बैल है ना भैस,लेकिन कुछ तथाकथित स्वयाम्संभु सुधारबादी रहनुमा लगातार युवाओ को सुनियोजित तरीके से निशाना बना रहे है,और युवाक्रान्ति जैसे गंभीर विषय को कूपमंडूक का विशवदर्शन समझ रहे है,उन्हें आज का युवा आगाह करता है,ज्वार समंदर में पत्थर फैकने से नहीं आता उसका रंगमंच तो बहूत पहले कही भीतर तैयार हो चूका होता है!
जब इस देश में अहिन्सबादी नपुंसक सोच का गांधीदर्शन आ सकता है है तो युवादर्शन क्यों नहीं? हमारा समाज लगातार परिवर्तनशील है जो की इस बात का गवाह है वो नए का स्वागत करना जानता है...
जय क्रांति जय हिंद
हेमू

आज का युवा न बैल है ना भैस

समाज कभी स्थिर नहीं रहता उसमे कुछ ना कुछ परिवर्तन होता रहता है,जोकि लगातार निरंतर चलने वाली एक प्रकिर्या है,ये कोई चमत्कार या जादू नहीं है बिलकुल सरल प्रकिर्या है,जिस समाज में परिवर्तन नहीं होता वह मुर्दा है,सामाजिक मानसिक स्तर पर क्योकि मुर्दा सोच और मुर्दा जिस्म ही हरकत नहीं करते!
भारत में लगातार परिवर्तन हो रहा है जोकि इस बात का गवाह है भारत का आवाम जीवंत है और निरंतर प्रगतिशील है जिस युवा क्रांति की हम बात करते है वो कोई अचानक आने वाली नहीं थी उसकी प्रस्ठभूमि १९३१ में तैयार हुई थी बस अब वक़्त आ गया है उसके आने का,ये तो हमे तय करना है हम नए का स्वागत करते है या आलोचना करते है!
आलोचना से हमारी कलम घबराती नहीं है, वो जवाब देना जानती है, अक्सर कुछ तथाकथित समाजबादी सुधारबादी इससमे रोड़े अटकाने की कोशिश करते है उन्हें ये बर्दास्त नहीं होता की कोई युवा उनका नेत्र्त्ब करे,वो अपना सारा समय इसी उधेड़बुन में ख़राब करने में लगे रहते है की कैसे युवा को नीचा दिखाया जाये,अपमानित किया जाये,आज का युवा इन तथाकथित नतिक्ताबादी रहनुमाओ को आगाह करता है की वो चाहे कितना जोर लगा ले आज का युवा रुकने वाला नहीं!
वो तो परवाना है जलना जानता है, जलने के डर से उड़ना नहीं छोड़ता,भैंस जब पोखर में बैठती है तो पानी में तरंगे उठती है और वो उन तरंगो को सुनामी समझ लेती है ये उसकी गलती नहीं है उसके पूर्वजो ने उससे मूक भाषा में यही समझाया था वो तो उसका अनुसरण कर रही होती है...
आज का युवा न बैल है ना भैस,लेकिन कुछ तथाकथित स्वयाम्संभु सुधारबादी रहनुमा लगातार युवाओ को सुनियोजित तरीके से निशाना बना रहे है,और युवाक्रान्ति जैसे गंभीर विषय को कूपमंडूक का विशवदर्शन समझ रहे है,उन्हें आज का युवा आगाह करता है,ज्वार समंदर में पत्थर फैकने से नहीं आता उसका रंगमंच तो बहूत पहले कही भीतर तैयार हो चूका होता है!
जब इस देश में अहिन्सबादी नपुंसक सोच का गांधीदर्शन आ सकता है है तो युवादर्शन क्यों नहीं? हमारा समाज लगातार परिवर्तनशील है जो की इस बात का गवाह है वो नए का स्वागत करना जानता है...
जय क्रांति जय हिंद
हेमू