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Monday, March 7, 2011

अफजल गुरु की फांसी की सजा रद्द की जाये




इस मांग का कारण है की वो अनजाने में ही सही लेकिन एक अच्छा काम करने जा रहा था,
वो काम था देश को इन नेताओ के चंगुल से आजाद करवाने का,अगर उसका प्लान कामयाब रहता तो देश को अनगिनत फायदे होते,इतने घोटाले जो इन नेताओ ने किये है वो नहीं हो पाते,अफजल गुरु अगर तुम कामयाब हो जाते तो तुम्हारी उपलव्धि भगवान राम के दशानन मर्दन से भी बड़ी होती,क्योकि उन्होंने एक बार में एक ही रावण मारा था तुम एक साथ सारे मार देते....
लेकिन मित्रा तुमने एक बड़ी गलती की जो तुमने हमारे नेताओ को आम आदमी समझा,तुम भूल गए ये आम आदमी नहीं दोमुहे सांप है जहा से भी पकड़ोगे डस लेंगे...!
तुम्हे धर्मबम धर्मबम ही खेलना था तो किसी चाय की थडी,रेलवे स्टेसन,बस स्टैंड पर ही खेल लेते,अगर कोई मर भी जाता तो कोई फर्क नहीं पड़ता,
बाबले तू बड़ा भोला है ये अमरीका नहीं है जो लोग तेरे धर्मबम से डर कर घर में छुपे रहेंगे,यहाँ सब को इतनी जल्दी है की पुलिस वाले घटनास्थल,लाशो का पंचनामा भी नहीं कर पाते और लोग आवाजाही शुरू कर देते है....
लाला इस देश में अगर १००,५० मर भी जाते है तेरे फट्टू बम से तो उससे कही ज्यादा ब्रेकिंग न्यूज़ के ख़तम होते होते पैदा भी हो जाते है,यहाँ कहा तू हमारी आबादी ख़तम करने चला था,तू भूल गया हमने प्राइमटाइम वाली ब्रेकिंग न्यूज़ के बीच वाले ब्रेक ब्रेक में ही देश की आबादी ११५ अरब कर दी,और तू नकली सा पटाखा ले कर चला था हमें ख़तम करने

लल्ले हमें तो कटे हाथ वाली पार्टी भी ख़तम नहीं कर पाई जिसने हमारे सभी पोषक तत्व इतने महंगे कर दिए की हम तक ना पहुच सके ताकि हमारी आबादी कुपोषण से ख़तम हो जाये,लेकिन हम वो चीज है जो निंदा रस पी पी कर ही जिंदा रह सकती है,कॉक्रोचो से ज्यादा हम प्राक्रतिक संतुलन बनाने में माहिर है,नहीं विश्वास होता तो हमारी फ़ूड चैन देख ले,जिसे कटे हाथ वाली पार्टी हर बजट में बदल देती है,और हम फिर भी संतुलन बना लेते है.....
तू दोनों तरफ से फेल हो गया,हम तो अपील कर सकते है इससे ज्यादा कुछ नहीं,क्योकि हमारी मांगे ५ साल में एक दिन सुनी जाती है,जो कभी पूरी नहीं होती....
इस्सी लिए मज़े कर दाल पी पी कर और खुश हो की तू भाग्यशाली है जो तुझे निट्ठले बैठे दाल मिल रही है,हम सारे दिन ऐसी की तैसी कराते है,दिन भर घिसते है फिर भी दाल मय्सर नहीं होती.. जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

Sunday, March 6, 2011


कल एक भाई ने मुझे से पुछा था की मै कौन हूँ,ये सुन कर मै भी सोचने लगा की मै कौन हूँ......
मै कौन हूँ ये तो नहीं पता मुझे पर इतना तो पक्का हो मै देशभक्त नहीं हूँ,क्योकि मेरे पास बंगला,बड़ी बड़ी गाडी नहीं है,पैसा नहीं है,.......!ये कोई कल्पना नहीं है साथियों अगर मै देशभक्त होता तो ये सब कुछ होता मेरे पास,विस्वास नहीं होता तो किसी राजनीतिक पार्टी के युवा सम्मलेन में जाकर देख लो...
कभी कभी इनमे भीड़ बढ़ाने के लिए मेरी जरुरत पड़ती है,सुंदर सा कार्ड भेजा जाता है मेरे पास,और मै इसी में खुश हो जाता हूँ की लेमोजिन वाले देशभक्त ने मुझे याद किया,इज्ज़त बख्शी....
जब मै वहा पहुचता हूँ तो सबसे पहले अपना फटा जूता छुपाता हूँ सबकी नज़र से और.और देशभक्त से नज़र बचा कर उस भीड़ में शामिल हो जाता हूँ जो देशभक्त के पीछे पीछे नारे लगाती चल रही होती है..और कोशिश करता हूँ किसी की नज़र मेरी फटी पतलून पर न पड़े इस लिए नारा मुह से लगाता हूँ और हाथ पैवंद पर रखता हूँ,आकाश में नहीं उठाता,हो सकता है ये देख कर किसी को मेरे कमजोर होने का अहसास होता हो चलो कोई बात नहीं..
अन्दर मंच पर बहूत सारे देशभक्त नए नए कलफ लगे कुरते पहन का बैठे होते है... और एक एक करके सभी अपने प्राइवेट कलमघिस्सुओ का लिखा युवा एकता के नाम से रटी रटाई विचारधारा को को धयान में रख कर लिखा गया भाषण गर्व से पढ़ते है,जिन सब्दो का उन्हें अर्थ भी पता नहीं होता.
इसी दरमयान मै और मेरे पास बैठे सैकड़ो भूक्कड़ इसी उधेड़बुन में लगे रहते है कब देशभक्तों का देश प्रेम ख़तम हो तो हम स्टाल में लेगा पकवानों का लुत्फ उठाये...
मै पहलवान भी नहीं हूँ क्योकि मुझे अपनी ताकत का अहसास तब होता है,जब सारे भूक्कड़ खाने की मेज की तरफ कूच करते है,और मै उन्हें चीर कर आगे नहीं बढ़ पता...
और बड़े दुःख की बात ये भी होती है सारे भुक्कड़ो के साथ धक्का मुक्की के बीच मेरी पतलून और फट जाती है.... एक हाथ आगे एक हाथ पीछे रख के बड़ा ही लूटापिटा सा घर लौटता हूँ..
मै कलमकार भी नहीं हूँ,क्योकि जब लिखने बैठता हूँ शब्द कही शितिज में खो जाते है,बहूत कोशिस करता हूँ शब्दों की माला गुथने की.पर गुथ नहीं पाता,बैठा बैठा फिर खाली कागज पर आढीटेढ़ी लकीरे खीचता रहता हूँ,अपने हाथ की उलझी आढीटेढ़ी रेखाओ की तरह जिसमे तकदीर का खाना विधवा की मांग की तरह खाली है..!

मै चित्रकार भी नहीं हूँ,जब भी चित्र उकेरने की सोचता हूँ,मन में कल्पना करता हूँ तो सिर्फ और सिर्फ अंतर्मन में जली हुई रोटी,सिल्वर की कटोरी,टूटी हुई खाट,घर्र घर्र करता टेबल फेन ,फटी हुई चप्पल,पैवंद लगी पतलून,एक झोपडी जिसकी छत्त बारिश के मौसम में रात रात भर रोती है ही नजर आता है,और वो सफ़ेद कागज मुझे देशभक्त के कुर्ते की तरह मुह चिढाता है,.....
मै लीडर भी नहीं हूँ क्योकि कोई सफेदपोश मुझे मंच पर चढ़ने नहीं देता,माइक पर बोलना to दूर की बात है...!
आखिर मै बला क्या हूँ,ये जानने के लिए मैंने बहूत रिसर्च की तो पता लगा की मेरी हरकते,और हालात भारत के आम आदमी से मिलते जुलते है,जो राशन डिपू,और सरकारी नल पर ही नेतागिरी,और पहलवानी कर सकता है या कभी कभार ठर्रा पी कर पडोशी से धींगामुस्ती करता है...

Friday, March 4, 2011




देश में कलमघिस्सुओ की कोई कमी नहीं है जो अपने फायदे के लिए अपनी कलम घिसते है खबर को सरकारी जामा पहनाने के लिए,इसके साथ साथ नीली स्याही को बदरंग कर देते है!
साथियों देश में ऐसे कलमकार बहूत कम बचे है जो अपने भीतर का आक्रोश और खून कलम में भर कर निष्पक्ष होकर लिखते है,और ये बड़ा दुर्भाग्य है ऐसे कलमकारों को कभी दाद नहीं मिलती,सिर्फ खाज मिलती है!
खाज वाले कुत्तो से,और ये खाज वाले कुत्ते दिन भर हाथी और शेर पर लगातार भोकते रहते है!
इससे हाथी और शेर पर फर्क तो कोई नहीं पड़ता परन्तु धव्निपरदुषण तो होता ही है ना?
हमें कुत्ते का मुह तीरों से भरना आता है....
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह



क्या कोई इस तस्वीर को लगातार दो मिनट देख सकता है? ये एक बांगलादेशी अध्यापक कि तस्वीर है, जिसके सर पर बम फोडा गया है! इसका अपराध सिर्फ ये था कि वोह एक हिंदू था, और उसने इस्लाम अपनाने से मना कर दिया था! ऐसे कई किस्से बांगलादेश में रोजाना होते है, वहां के १८% हिन्दुओ के पास केवल ३ रास्ते है, इस्लाम काबुल करो, देश छोड दो या दुनिया छोड दो........ बस्स!!!!
Photos from प्रत्यंचा : सनातन संस्कृति के साथ विकास की ओर____Rudra sharma

साथियों ये खबर पढ़ कर मेरे मुझे अपने अन्दर भरे धरमनिरपेक्षता रुपी विचार खोखले,और कमजोर लगने और पड़ने लगे है,इनकी हालत उस जड़ से आधे उखड़े पेड़ की तरह हो गयी जिसे अगर मेरे मुसलमान भाइयो ने सहारा नहीं दिया या आगे आ कर उन कुकर्मियो की निंदा नहीं की तो गिर जायेगा!धरमनिरपेक्षता को बचाने के लिए असफाक उल्ला की तरह आगे आओ,और निंदा करो,चुप मत रहो!धरमनिरपेक्षता को बचाना मेरे अकेले के बस का नहीं है तुम्हारा साथ बहूत जरुरी है.....!
लेकिन इस के साथ मै इंडिया,और बंगलादेश की सरकार से सवाल करता हूँ,की क्या उसे हिन्दुओ और गैर इस्लामिक लोगो के हालात दिखाई नहीं देते,अगर नहीं दीखते तो डूव कर मर जाओ,पर चुल्लू भर पानी में मत डूवना क्योकि वो किसी के पीने के काम आयेगा,तुम सरकारी सुलभ सोंचाल्य में डूवना,यही बेहतर होगा देश की अखंडता और एकता के लिए!
बंगलादेसी हुक्मरानों और उसके पिट्ठू कठ्मुल्लाओ तुम्हारा जनम हमारे ही हाथो हुआ है,और हमें पता है तुम्हारी पतलून में कितनी बड़ी बन्दूक है,कभी तोप की सीध में मत आ जाना....!
तुम नाली में बिजबिजाते कीड़े के शरीर में पड़े कीड़े से भी गए गुजरे हो जो उस निहत्थे मास्टर पर अपनी मर्दानगी दिखाते हो,कमीनो तुम्हारी मर्दानगी पाकिस्तानियो के आगे कहा चली गयी थी जो अपना पिछवाडा लिए हमारे पास आये थे,बोर्डर पर क्या तुम कटा सूअर खा कर आते हो या महाकाल के रोद्र रूप को देख कर तुम्हे दस्त लग जाते है जो भाग जाते हो बोर्डर खुला छोड़ कर..!
तुम्हारी मर्दानगी हमने देखी थी जब तुमने धोखे से हमारे जवानों को मारा था,फिर पलट कर हमारे जवानों ने जवाब दिया तो तुम अपनी मम्मी खालिदा जिया के लहंगे में जा कर छुप गए थे याद है ना,तुम्हारी मम्मी फिर हमारे बहादुर शाह जफ़र सरीखे अटल बिहारी जी के पास आई थी,शिकायत करने...!
और बंगाल्देशी हिन्दुओ लानत है तुम पर,जो तुम रोज़ रोज़ अपनी बहेन,बेटियों की इज्ज़त दाव पर लगाते हो,याद करो दिलीप सिंह,गुरु तेग बहादुर,रना परताप,रना संग,पृथ्वी राज चौहान,और उन १२० जवानों को जिन्होंने २००० पाकिस्तानी पेटेंट टंक में बैठे सुअरों को धुल चटाई थी,लड़कर मरोगे तो सहीद कहलाओगे.हथियार उठाओ बुद्ध नहीं महाकाल शिव बनो,बम का मुकाबला बम से,बन्दूक का मुकाबला बन्दूक से करो,ऐसे कीड़े की तरह जिंदा रह भी गए तो क्या फायदा,ये नहीं कर सकते तो नसबंदी करवा लो ताकि आने वाली पीढ़ी तुम्हारी नपुंसकता के बारे में ना जान पाए....
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

Thursday, March 3, 2011


गाँधी और भगत सिंह के बीच फसा हेमू
पूछता है सवाल तो
बिलबिलाते है कीड़े
संस्कृति के रहनूमाओ के मन में
और इतिहास मुह काला लिए
आ जाता है सामने
बापुवादियो की कुर्सी की चाह,भगत सिंह की आह,तिरंगे की राजनीती
आज छोड़ आया मै भी भगत सिंह के आदर्शो को
अलीगढ के बूचड़खाने में.....
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

Wednesday, March 2, 2011

भगत सिंह तुम फेल आदमी हो


भगत सिंह तुम फेल आदमी हो,तुम जिन आदर्शो और सिधान्तो की बात करते हो वो भी तुम्हारी तरह फेल है,क्योकि उनमे सिर्फ देशभक्ति है राजनीती नहीं,इसी कारण वो हर जगह फेल है!
तुम हालात को देख कर अपने सिधांत लिखते,क्या तुम्हे पता नहीं था की जो युवा तुम्हारे साथ तुम्हारे वक़्त में नहीं थे उनकी संताने तुम्हारे साथ भविष्य में कैसे होंगी!
तुम्हारे देशभक्ति भरे सिधान्तो की वजह से मै रोज बापू के बेटो के निशाने पर रहता हूँ,मुझे शिकायत है तुमने उसमे राजनीती क्यों नहीं जोड़ी!
और तो और तुम बेकार में फांसी चढ़ गए बिना लालच,तुम्हे राजनीती करनी थी ताकि हमे भी सत्ता का सुख मिलता,कही तुम भी चरखा ले कर बैठ जाते,क्यों जुल्म के खिलाफ पिस्तोल उठाई?
तुम्हारे सिधान्तो को कोई नहीं पढता क्योकि वो कीमत मांगते है,जज्बा मांगते है त्याग मांगते है,तुम्हे भी अपने समकालीन नेताओ की तरह सिधांत गढ़ने चाहिए थे,जिनमे सब कुछ मिलता हे मिलता है खोना कुछ नहीं पड़ता!
और तो और तुम्हे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दू की आंशिक रूप से आजाद इंडिया की सरकार की नज़र में तुम्हारी कीमत एक रुपये,दो रुपये से ज्यादा नहीं है और दूसरी तरफ तुम्हारे दौर के बकरी वाले बाबा हजारो पर छाए हुए है,अगर मेरा ख़त पढ़ रहे हो तो दोबारा जन्म मत लेना, नहीं तो सरकार तुम्हे आतंकवादी कह कर जेल में सडा देगी,फांसी भी नहीं देगी!
ये सब लिखते हुए मेरी आँखों में आंसू है तुम्हारे लिए,कलम भी डगमगा रही है,लेकिन भगते भाई मै मजबूर हूँ तुम्हारे सच्चे सिधान्तो की लाश अब और नहीं ढो सकता,मेरे लिए खुद की रोज़ रोज़ बेइजती करवाना मुश्किल है,भाई शेर को कुत्तो ने चारो तरफ से घेर रखा है,आखिर कब तक वो अकेला इनसे लडेगा
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह