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Tuesday, February 15, 2011


आज का युवा बातों का सूत कातने में विश्वास नही करता, कर्म करने में यकीन करता है। मगर आज युवा शरीर में बूढ़ी मानसिकता वाले लोग बातें तो क्रांति की करते है, मगर चाहते यही है कि भगतसिंह पड़ोसी के घर में पैदा हो और हम गांधी की तरह तथाकथित देशपिता बन कर नोटों पर छा जाएं। इस मानसिकता से पीड़ित लोग बेवजह की नुक्ताचीनी में टाईम पास करने में लगे रहते है। ये लोग एक बने बनाए रास्ते पर चलना चाहते है क्योकि उनकी बौद्धिकता पर वृद्धता हावी हो चुकी है। राजनीति बहुत हो चुकी, 64 साल का भारतीय इतिहास इस बात का गवाह है, अब युवाओं को देश की खातिर कर्म करने दो, हम युवाओं को असफल क्रांतियां नही चाहिए। आज का युवा लोरिया नहीं सुनना नहीं चाहता।
क्रांति से हमारा अर्थ है- आमूलचूल परिवर्तन। यह पारिवारिक स्तर से शुरू होकर राष्टीय स्तर तक जाएगी, तो आप जैसे बूढी सोच वालों को आज के युवाओं के खिलाफ लामबद्ध हो जाना चाहिए क्योंकि पहली बगावत आपके घर से ही शुरू हो चुकी है।
रही बात वेलेंटाइन डे जैसे उत्सवों की तो आप जैसे लोग नकल भी सही ढग से नहीं कर सके और प्रेम को बाजारू बना कर छोड़ दिया। शीला मुन्नी जैसे गीत आप जैसे लोगों की दमित वासनाओं का परिणाम है। आज का युवा पीपली लाइव, माय नेम इज खान, थ्री इडियट के रूप में सामाजिक बदलाव का हामी है और यह बहुत जल्द आकर रहेगा।
1857 की क्रांति को सच्चाई को न समझने वाले लोग देश में क्रांति की पहली चिंगारी मानते है। कोई आज के युवा को यह बताए कि यह चिंगारी कौन सी नदी में लगाई थी, जिससे 70 साल बाद विस्फोट हुआ। आज का युवा बूढी मानसिकता वालों को इस बात का हक नहीं देता कि वो युवाओं के जज्बात, भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू, खुदीराम बोस, रासबिहारी बोस, उद्धम सिंह, मदन लाल, आशा भाभी, प्रेमलता, मालती, आजाद, बोस जैसे युवा जांबाजांे के देश के युवाओं को हिजड़ा कहे, क्योकि उसने ऐसा कह कर इन अमर जवानों के परिवार के युवाओं को गाली दी है। उनका देश जो कि उनका परिवार है, इस परिवार का सदस्य युवा हिजड़ा नहीं है।
आप जैसे बूढ़ी मानसिकता वाले महानुभावों को आज के युवा की यह खुली चेतावनी है कि या तो हमारे साथ आ जाए वरना ’हमसे जो टकराएगा,मिट्टी में मिल जाएगा।’
शूरा सो पहचानिए, जो लड़े दीन के हेत
पुर्जा पुर्जा कट मरे, कभी न छाड़े खेत
जो धो प्रेम खेलन का चाव
सिर धर तली गली मोरी आओ
जय क्रांति, जय हिन्द

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