काश विभाजन दिलो की वजाय सिर्फ जमीन,साहित्य,भाषा,इंसानों का होता तो बेहतर रहता....
तब के लगे ज़ख़्म आज तक नहीं भरे,रह रह कर इनमे टीस उठती है.जिस तथाकथित धर्म की सनक पर सवार होकर दो मुल्को का निर्माण हुआ,वो सनक पाकिस्तान को तो ले डूबी,अब उसी रास्ते की और हम भी अनजाने में कदम बढा रहे है,उन्होंने देश से बड़ा धर्म को समझा नतीजा भी भोग रहे है
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