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Monday, February 28, 2011


हिंसा का सिधांत
हमारा देश निरंतर प्रगतिशील है,और हर दशक में इसकी जरूरते,समस्याऐ बदलती रहती है,इनमे से कुछ समस्याओ का हल होता है कुछ अनुत्रित सी सुरसा की तरह मूह बाये खड़ी रहती है,लेकिन जनाक्रोश जब बढ़ता है जब समस्याऐ हल नहीं होती और उनका अम्बार लग जाता है,और हुक्मरान उनको सुलझाने,हल करने की गंभीर कोशिश नहीं करते,जिसकी वजह से हुक्मरान और आवाम के दरम्यान दूरिया बढती चली जाती है.
फिर जरुरत महसूस होती है आवाम को हुकूमत के बदलाब की,लेकिन हुक्मरान बदलाब आने नहीं देना चाहते ,खटमल की तरह कुर्सी की गद्दी से चिपके रहते है,
समस्या और दूरिया जब बढती चली जाती है तो संघर्ष में तब्दील हो जाती है,इस संघर्ष की रूपरेखा और हथियार इस बात पर निर्भर करते है की हुक्मरान ने दमन का कौन सा तरीका अपनाया है और चुना है!
अगर हुक्मरान ने बन्दूक के सहारे दमनकारी रक्तजनित तरीका अपनाता है तो अमूमन शोषित वर्ग भी बन्दूक उठा लेता है,फिर जो हिंसा होती है उसका जिमेदार सिर्फ पीड़ित वर्ग अकेला नहीं होता,उसकी जिमेदारी हुकूमत की भी होती है!
फिर अकेले शोषित को दोष देना कहा तक उचित है,कहा का न्याय है,साश्त्रो में लिखा है मातृभूमि की रक्षा के लिए हथियार उठाना धर्म है.....(क्रमस)
जय क्रांति जय हिंद
हेमू सिंह

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