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Sunday, February 27, 2011


उम्र के इस अंतिम पड़ाव पर
उम्रकैद की सजा भुगत रहा हूँ मै
ठहरा हुआ वक़्त भी एक ना एक प्रशन
खड़े कर देता है
बहरूपिया बनकर खुद को बचाता हूँ मै
कितना मुश्किल है जीना
एक पेपरवेट की तरह पड़े रहना
विनती तो है उस खुदा से जो जल्दी
मौत का जेवर पहना दे
इस मुर्दा मुल्क से उठा दे
टोपी उठा कर फिर सजदा कर रहा
हूँ मै
उम्र के इस अंतिम पड़ाव पर
उम्रकैद की सजा भुगत रहा हूँ मै
जय क्रांति जय हिंद
हेमू

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