उम्र के इस अंतिम पड़ाव पर
उम्रकैद की सजा भुगत रहा हूँ मै
ठहरा हुआ वक़्त भी एक ना एक प्रशन
खड़े कर देता है
बहरूपिया बनकर खुद को बचाता हूँ मै
कितना मुश्किल है जीना
एक पेपरवेट की तरह पड़े रहना
विनती तो है उस खुदा से जो जल्दी
मौत का जेवर पहना दे
इस मुर्दा मुल्क से उठा दे
टोपी उठा कर फिर सजदा कर रहा
हूँ मै
उम्र के इस अंतिम पड़ाव पर
उम्रकैद की सजा भुगत रहा हूँ मै
जय क्रांति जय हिंद
हेमू
No comments:
Post a Comment