
आज सुबह एक खबर देख कर मन बेहद विचलित हो गया। ये सिर्फ एक खबर नहीं थी, एक तमाचा था, एक सवाल था कानून व्यवस्था पर। खबर यह थी कि तीन लड़कों ने एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार की कोशिश नाकाम रहने पर उसके हाथ पैर काट दिये। सरसरी तौर पर तो यह भारत में रोज होने वाली एक आम घटना है। लेकिन ये घटनाएं रोज क्यों होती है। यकीनी तौर पर इसका कारण है नकारा कानून, नकारा पुलिस, मुर्दा अवाम।
अगर ये लड़की आज मर जाए तो बेहतर है। नहीं तो जब तक केस चलेगा, तब तक हर पल हर रोज मरेगी। शारीरिक तौर पर तो इसका उत्पीड़न हो ही चुका है, मानसिक बलात्कार हर नई सुबह, हर नए सवाल के साथ होगा। आजादी से आज तक हम क्यों कोई कारगर कानून नहीं बना पाए। जो इन बलात्कारियों के खिलाफ हथियार साबित होता। इतना बड़ा जुर्म करने के बाद भी अगर इन लड़कों को सजा मिलेगी भी तो 5 या 10 साल की। क्या यह सजा पर्याप्त है? क्या इससे उस लड़की को न्याय मिल पाएगा? होना तो यह चाहिए कि पीड़ित लड़की को 30 दिन में न्याय मिले और दोषियों को कम से कम फांसी की सजा सुनाई जाए। क्योंकि जिस दिन किसी लड़की से बलात्कार होता है। उसी दिन उसकी मानसिक हत्या हो जाती है। मैं मेरी बेटी पर जो कि मात्र 6 साल की है, हर वक्त चौकस नजर रखता हूं कि कहीं किसी भूखे भेडिये की नजर उस पर न पड़ जाए। जब मै घर से बाहर होता हूं मेरी पत्नी उस पर नजर रखती है, स्कूल में उसका भाई रखता है। वो तो यह भी नही समझती कि हर वक्त उसके साथ कोई न कोई क्यो होता है। ये डर क्यों हम क्यों नही खत्म नही कर पाएं। क्यों हम इन भूखे भेडियों से निपटना नही सीख पाए। क्यो हमने इन भेडियों के सामने हथियार डाल दिये है और बेटियों को पेट में ही निपटाना शुरू कर दिया। क्या ये हल था समस्या का या लाचारी थी या बुजदिली थी? अब वक्त आ गया है, वक्त रहते जाग जाने का। हो सकता है कल जिसके साथ बलात्कार करके ऐसा हाल किया जाए वो हमारी मां, बहन, बेटी भी हो सकती है। वध के लिए हथियार उठाना धर्म है। नपुंसक सरकार, नाकारा कानून और पुलिस अगर अवाम को इंसाफ दिला पाने में ऐसे ही असफल होती रही तो वो दिन दूर नही जब लोग अपने हाथ में हथियार उठा लेंगे। बलात्कारियों के खिलाफ नरम और अहिंसक कानून एक बडा जुर्म है, मानवता के खिलाफ। इन्हे तालिबानी तरीके से ही सजा देनी होगी। विकसित होने की दौड़ में हम मानवता को बहुत पीछे छोड़ आए है। अच्छा होता हम आदिमानव ही रहते।
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