
बड़ी ही सफाई से बापुवादियो ने कथित बापू को मिश्र की क्रांति में फिट कर दिया...
वह शायद ये भूल गए की इस अति नाटकीय घटनाक्रम का सुखद अंत वहा की जनता की मेहनत का परिणाम है और कैंसर से जूझते तानाशाह का लाचारी भरा समर्पण है !
अगर वहा कोई हिंसा नहीं हुई तो उसका कारण तानाशाह की दूरदर्शिता थी,वो समझ चूका था की अगर शांतिपूर्वक बात नहीं मानी तो जनता किसी चौक चोराहे पर लटका देगी!
मै बापुवादियो से पूछना चाहता हूँ की आप हर सफल आन्दोलन का श्रेय बापू के विचारो की विजय के रूप में बापू को क्यों दे देते हो?यह क्यों भूल जाते हो क्रांति का हथियार परिस्तिथिया तय करती है,और पटकथा हालत लिखते है.!
आपके बापू मिश्र से आगे का रास्ता भूल गए थे क्या जो लीबिया नहीं पहुचे,या वहा की जनता का दिमाग ख़राब हो गया था,जो उन्होंने हथियार उठा लिए,अपनी कुन्षित विचारधारा से देश का बेडा गर्क तो कर ही दिया है दूसरो को तो छोड़ दो,और ये अर्नगल प्रलाप बंद करो!
स्विस बैंक से पैसा तो आता रहेगा,पहले गरीब का हाथ वापस लौटा दो!
जय क्रांति, जय हिंद
हेमू
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